Tuesday, December 19, 2017

जवाबदेह सरकार आगामी जरूरत

!! सम्पादकीय!!

शुक्रवार; 19 दिसम्बर, 2017; ईटानगर

जवाबदेह सरकार आगामी जरूरत

कर्मवीर मनुष्य के जीवन में उपलब्धियाँ हैं, तो व्याधियाँ यानी बाधाएँ भी अनगिनत हैं। अवांछित और अनपेक्षित बदलाव का होना तो जैसे तय बात है। असल बात जो है वह यह कि हम अपनी मुसीबतों से निपटते कैसे हैं। समक्ष खड़ी परेशानियों से पार कैसे पाते हैं। कई बार ‘जान बची तो लाखों पाये’ की नौबत आ जाती है। किन्तु बच जाने के बाद हम कैंसे बचे हैं इसको बिसरा देते हैं। जीत पर जश्न हमारी प्रवृत्ति है। कई बार आवश्यकता से अधिक कुहराम मचाना जन्मसिद्ध अधिकार मान बैठते हैं। संकट की घड़ी में परिस्थितियों से छुटकारा पाने की छटपटाहट देखते बनती है। पर अच्छे दिन आते ही बीते अनुभव से सीख लेने की जगह अपनी ही हाथों अपने को गुदगुदी करने लग जाते हैं। हमारा अहंकार और गुरुर आड़े आ जाता है। हम परिणामवादी नज़रिए से सोचना शुरू कर देते हैं। हालिया गुजरात चुनाव ‘कवरेज़’ में मीडिया का रसूख़ छककर बोला। काॅरपोरेटी मीडिया के आगे अधिसंख्य नेतागण सिवाय लम्पटई दिखाने के कोई उल्लेखनीय भूमिका में नज़र नहीं आये। देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अतिनाटकीयता का फ़ालतू अध्याय खोला, तो राहुल गाँधी पहली बार आलोचनात्मक राजनीति के पाठ से सही मायने में जुड़ते दिखाई दिए। नरेन्द्र मोदी की तुलना में उनकी भाषा और शैली दोनों में ताज्जुबकारी अंतर नज़र आया। वे विपक्षी पार्टी के साथ तंज की नए मुहावरेदानी में सार्थक ‘डिस्कोर्स’ करने में संलग्न रहे। अब तक राहुल गाँधी नरेन्द्र मोदी के ‘बिग इमेजिनेशन’ के आगे घुटने टेकते रहे हैं। लेकिन इस बार मुकाबले में राहुल गाँधी का प्रचारवादी रवैया बेहद संतुलित और स्थायी-भाव लिए रहा। दुःखद किन्तु सचाई है कि अन्य नेतागण राजनीतिक तमीज़ से बात करने से कन्नी काट गये। गुजरात में हुए विकास को ‘जैनुइन’ तरीके से जनता के समक्ष लाया जाये या कि ‘वाइब्रेंट गुजरात’ की वास्तविकता से आमजन को रू-ब-रू कराया जाए; इसका ‘होमवर्क’ बीजेपी नेताओं ने करना जरूरी नहीं समझा था। कुल के बाद भी भाजपा जीती है, तो इसका यह अर्थ कतई नहीं कि उसके नेताओं ने गलतियाँ नहीं की या कि वे सचमुच बहुत योग्य रणनीतिकार साबित हुए हैं। राजनीति में व्यक्ति-विशेष को श्रेय देने की परम्परा कांग्रेस ने शुरू की थी। आज भाजपा खुद इसी प्रभाव में है।

इन प्रवृत्तियों को राजनीतिक शब्दावली में कहा जाता है-अवसरवाद, समझौतापरस्ती, तुष्टिकरण, ध्रुवीकरण इत्यादि। कांग्रेस की फ़ितरत या कह लें कि उसकी पुरानी मानसिकता ऐसी ही रही है। लेकिन इस बार गुजरात चुनाव में कांग्रेस ने अलग तेवर, तरीके और तज़रबे से लड़ा। चुनाव में उसकी चहुँओर प्रशंसा दर्शनीय है। आलोचना करने वाली दृष्टियाँ राहुल गाँधी के ‘परफार्मेंस’ को बोनस अंक दे रही हैं तो यह अन्यथा नहीं है। कई सारे राजनीतिक विश्लेषक राहुल की बदली हुई भाषा और कहनशैली का जिक्र करते दिखे हैं। लगभग सबने यह माना है कि अब तक राहुल गाँधी अपनी परछाई के पीछे से बोलते थे। किन्तु इस बार उन्होंने सामने से बोलने का साहस जुटाया है। उनका इस तरह हिम्मतगर होना आगामी चुनावों के लिए शुभ-चिन्ह् है। सच कहें, तो यह बनते हुए राहुल की नई ‘सेल्फी’ है जिसमें परिपक्वता के नए ‘डिम्पल’ उभार ले रहे हैं। इसको कायम रखना टेढ़ी खीर है। अक्सर नेतागण जिनकी वजह से जीते उनको फौरी तरीके से याद करते हैं। बाद बाकी उन्हें भुला देना ही अपनी राजनीतिक सफलता का एकमात्र फ़लसफ़ा मानते हैं। सोचते हैं, संकट में पड़ना हमारी नियति हैं। जब संकट के ओले बरसेंगे, तो फिर संकटमोचन को याद कर लेंगे। पार्टी कार्यकर्ताओं में यह ‘परसेप्शन’ न बने इसको लेकर राहुल गाँधी को मुस्तैदी दिखानी होगी। राहुल गाँधी इस ‘चुनौती’ को जितनी भली-भाँति समझेंगे उनके कांग्रेस अध्यक्ष की पारी उतनी ही मजबूत, सुदृढ़ और पार्टी के लिए कारगर साबित होगी। ध्यान देना होगा कि आजकल नेता चमत्कारी होने को लेकर फ़िक्रमंद अधिक हो चले हैं। उनका कहना-सुनना, सोचना-समझना, जानना-बूझना जनता की भाषा में नहीं विज्ञापन और मीडिया की भाषा में प्रचारित-प्रक्षेपित है। अब टेलीविज़न डिबेट ‘आॅरिजनल’ की जगह ‘फे़क’ अधिक मालूम दे रहे हैं। यह नेतृत्वगत भेड़चाल की शनिदशा है जिसका प्रकोप सभी दलों के ऊपर है। प्रचारवादी राजनीति के इस युग में लोकप्रियता का ‘वन मैन शो’ शनि के साढ़े साती की माफ़िक ही ख़तरनाक है; लेकिन अक्सर चुनावों में सिक्का इनका ही चलता है। अतएव, नेता हो या पार्टी कार्यकर्ता हरेक व्यक्ति को यह समझना होगा कि राजनीतिक चुनौतियों और पार्टीगत कठिनाइयों से निपटना आसान काम नहीं है। समझदारी यही है कि राजनीतिक दल अपनी जवाबदेही और अपनी पद-गरिमा को लेकर पहले से सजग-सतर्क रहे। क्योंकि इस तरह की सावधानियाँ आत्मबल पैदा करने का काम करते हैं। द्रष्टव्य है कि नेतृत्व की दिशा सही होने पर अंदर-बाहर कई छोरों से संकल्पवान, निष्ठावान सहयोग-समर्थन मिलते हैं। जवाबदेह जनता स्वयं बढ़-चढ़ कर वैसे राजनीतिज्ञों को जिताती हैं जिनके लिए राजनीति सेवा और कर्तव्य का धराधाम हो, सद्भावना का मंदिर हो, संभावना का द्वार हो।

आज की विवेकी जनता ईमानदार कोशिश करने वालों को सबसे पहले और सर्वाधिक तरज़ीह देती है। भारतीय संस्कार और जीवन-दर्शन में पगी जनता की दृष्टि में कर्मण्यता की शक्ति ही किसी राष्ट्र की असल जमापूँजी है, तमाम विडम्बनाओं के बावजूद उसके सुरक्षित बचे रहने की मुख्य शर्त हैं। कई बार स्वयं अपने बारे में हमारा मूल्यांकन, नियामक सर्वथा भिन्न होता है। कर्मनिष्ठ व्यक्ति इस भिन्नता को भली-भाँति जानता है। दरअसल, आत्मचेतस होने का असली गुण यही है कि वह विजय के हर्षोल्लास के वक़्त भी अपनी मुर्खता और कमजोरी की खरी-खरी आलोचना करे और इस ग़लती पर बहस करने की बजाए उसे स्वीकारने का साहस जुटाए। राजनीति में इस गुणधर्म का होना राजनीतिक परम्परा को दीर्घायु बनाना है। इससे वैचारिक ठोसपन का पता चलता है। क्योंकि जनपक्ष की प्रस्तावना ही लोकतंत्र का केन्द्रीय-मर्म है। इतिहास साक्षी है, जिन भी नेताओं में पद की लालसा बेतहाशा रही, वह पद पाते ही अपना कब्र खोदने में लग गए। सत्ता के मद में उनका राजनीतिक कद छोटा होता गया। अस्तु, वर्तमानजीवी कई नेताओं का इतिहास में स्थान रत्ती भर नहीं है। कभी जिनके नाम का राजनीति में डंका बजता था, आज पार्टी में उनकी उपस्थिति तक को ‘नोटिस’ नहीं लिया जा रहा है। सो आज जिनके नाम की चर्चाएँ हैं, लोगों में हुंकार-जयजयकार हैं; वह देर-सवेर गुमनामी के अंधेरे कुएँ में दफ़न हो सकते हैं, कहा नहीं जा सकता हैं। कांग्रेस-भाजपा ही नहीं कई राष्ट्रीय दलों के कद्दावर नेता गवाह हैं जिनकी लोकप्रियता बीते दिनों चरम पर थीं, असर करिश्माई था; आज वे परिदृश्य से गायब हैं। फ़िलहाल गुजरात और हिमाचल दोनों प्रदेशों में भारतीय जनता पार्टी को मिला जनादेश सौ फ़ीसदी इस पार्टी की जीत है। इसका श्रेय आधा-अधूरा नहीं, बल्कि पूरा का पूरा नरेन्द्र मोदी के ‘वन मैन शो’ वाली भाजपा को ही मिलना चाहिए। कांग्रेस के हार का गुणगान अथवा महिमामंडन उचित नहीं होगा। यह और बात है, आगामी लोकसभा चुनाव से पूर्व होने वाले सभी प्रादेशिक चुनावों में कांग्रेस का पलड़ा भारी रहने वाला है। राहुल गाँधी ने इतना भरोसा जगा दी है।

नोट: प्रयोजनमूलक हिंदी के विद्यार्थियों के लिए सम्पादकीय-लेखन का माॅडल

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