Monday, January 28, 2013

Weeping Forest


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जंगल में शेर राजा होता है। इस शास्त्रानुसार जंगल का राजा शेर को ही होने चाहिए थे। लेकिन, इस जंगल का सर्वेसर्वा रानी थी। रानी का विवाह जिस शेर से हुआ था; उनके बाप-दादे राजा थे। यानी राजपाट शेर का खानदानी पेशा था। शेरू जिसे कई माह से राजा बनने का प्रशिक्षण दिया जा रहा था। आज अकेले पूरी बिरादरी भर का शिकार ले आया। इस अवसर पर भोज आमंत्रित हुए। शेरू की प्रशंसा में तालियाँ पिटी गई। जयजयकार हुए। गुणी लोग गुणगान करने आगे आए।

शेरनी की बाँछे खिल गई। शेरू के महानतम राजा बनने की बात सुन-सुनकर ही वह निहाल हो चुकी थी। आँख से आँसू ढरक लिए। पूरा जंगल उसका नेतृत्व स्वीकारता है; यह सोच कर ही वह अपने मातृत्व को धन्य समझ रही थी। उस रोज सर्वसम्मति से निर्णय हुआ-‘अगला राजा शेरू होगा। शेरू अपने वंशजों का नाम रौशन करेगा। माता रानी शेरनी की अपेक्षा और आशा भी यही है।’’ ’

जंगल में शेरनी के कारिन्दों ने ख़बर फैला दी। पूरे जंगल में जगह-जगह पोस्टर लग गए। कहीं-कहीं शोर कर, चिल्ला कर यह बात सबको जनाई गई।

हिरू जो हिरन का लड़का था। अप्रत्याशित ढंग से खुश था। क्योंकि शिकारी द्वारा वध किए गए शिकार को अपना शिकार कहने का आइडिया शेरू को उसी ने दिया था। शेरू हिरू को मानता बहुत था। इसलिए उसे यह आइडिया जँची। इसके बदले में शेरू उसके साल भर तक के भोजन का जिम्मा स्वयं ले चुका था।

जंगल में चुनाव होना था। तैयारी जोर-शोर पर थी। चुनावी टंट-घंट चल रहे थे। शेरू का प्रतिद्वंद्वी कोई नहीं था; ऐसा नहीं था। दो-तीन जन शेरू को कड़ा टक्कर दे रहे थे। आपस में इसके लिए रणनीति तय की गई। चुनाव में शेरू की जीत हो ली।

यह क्या? शेरू ने नियम बना दिए कि जनता की भाषा में राजकाज नहीं होगा। उनकी बात नहीं सुनी जाएगी। जो भी समस्या हो। वे हमारी भाषा में बात करें। सबका निवारण होगा। भाषा की समस्या के लिए नए ट्रेनिंग स्कूल खोलने की बात चली। उससे पहले टीचरों को प्रशिक्षित होने के लिए दूर-देश के जंगल भेजा गया।

शेरू वहीं से पूर्व-प्रशिक्षित था। वे वहाँ सामाजिक मौज किए। वहाँ के रहन-सहन का लुत्फ उठाया। भाषा भी सीख ली थी। भाषा बस आदेश देने लायक, इनकार और राजी होने भर तथा थोड़ी ऊंची आवाज़ में रौब झाड़ने की थी। शेरू ने कहा, बस इतना ही काफी है।

हिरू इस निर्णय के खिलाफ था। वह बगावती तेवर अपनाये हुए था। उसका कहना था कि जनता की बात जनता की भाषा में हो। शेरू ने तर्क दिया कि इस जंगल में सभी जानवरों की भाषा एक नहीं है। संवाद करने में कठिनाई होती है। हीनताबोध होता है सो अलग। बाहरी भाषा सुसंस्कृत है। आज़ाद ख्यालों की है। उसमें संवाद करने से हमारे व्यक्तित्व का विकास होगा।

हिरू अड़ गया। उसने शेरू से कहा कि मैं तुम्हारा पोल सार्वजनिक कर दूंगा।

शेरू ने हिरू को समझाया काफी। पर उसकी एक न चली। शेरू ने उसकी गरदन मरोड़ दी। दो दिन तक शेरू शोकग्रस्त रहा था। उसे अफसोस था कि वह अपने नासमझ मित्र को अंत तक समझदारी न सिखा पाया।

उधर इस घटना के बारे में तरह-तरह की चर्चाएँ हैं। उसके परिजन कहते हैं कि हिरू नासमझ था। अपना हित न सोचकर उसने हम सबका अहित ही किया है। उसे शेरू से मित्रता का फायदा उठाना चाहिए था। कम से कम वह संवाद-मित्र की भूमिका में तो था। हमारी बात राजा से कहता-सुनता। दरअसल, राजसी भाषा उन्हें आती नहीं थी। और उनकी भाषा में कोई सुनता नहीं था। अब तो जंगल की नई पीढ़ी राजसी भाषा को ही अपनाने को व्यग्र थी। उस भाषा में लोग बेकार नहीं थे। सबको बढ़िया काम नसीब थे।

इस तरह जंगल का राजकाज चल रहा है। जंगल में जंगलराज होने पर किसी को भी तकलीफ क्या होगी भला?

लेकिन जंगल रो रहा है। जंगल के लोग सोच रहे हैं कि जंगल को रोने का रोग लग गया है।

बच्चे कहते हैं-‘Weeping Forest, why are
you weeping?'

जंगल निरुत्तर है।

हँसों, हँसो, जल्दी हँसो!

--- (मैं एक लिक्खाड़ आदमी हूँ, मेरी बात में आने से पहले अपनी विवेक-बुद्धि का प्रयोग अवश्य कर लें!-राजीव) एक अध्यापक हूँ। श्रम शब्द पर वि...