Monday, July 24, 2017

देव, आज दीप का जन्मदिन है!


प्रिय देव,

आज दीप का जन्मदिन है। इस एहसास को तुमने नहीं भूलने दिया। पीएच.डी. के भागदौड़ और लिखापढ़ी में तो मैं भूल ही गया कि 25 जुलाई के मैं करीब आ पहुँचा हूँ। तुमने मनुहार कर उसके लिए शाॅपिंग की। बैलुन खरीदे। चाॅकलेट का पैकेट। गिफ्ट देने के लिए ‘इस्ट्रूमेन बाॅक्स’ लिया। मैंने देखा तुम उससे सिर्फ 2 वर्ष बड़े होने के बावजूद कैसे चिंता करते हो उसकी। यह अच्छी बात है। अपने से छोटे के प्रति आदर स्वयं बड़ा होने की गरिमा को बढ़ा देता है। यह सामाजिकता हमने दूसरों को करते हुए जाना है; और यही वह मूल थाती है जिसे बरकरार रखना है। दीपू के लिए दादा का लाड़-प्यार कभी तुम्हारे जैसा नहीं मिला। अब तुम भी दादा-दादी से इतने दूर हो गए हो कि वे बस बेसब्र होकर तुम्हारी बाट जोहते हैं, कभी शिकवा-शिकायत नहीं करते। शिकायत तो तुम्हारी मम्मी भी नहीं करती जिसे मैंने बहुत कष्ट दिया। तुमलोग कब बड़े हो गए, मुझे पता ही नहीं चला। तुम्हारी माँ सीमा देवता है जिसके आगे मैं कुछ भी नहीं हूँ।

देव, तुम्हारी मम्मी ने मुझे जिस तरीके से पढ़ाया और आगे बढ़ने का हौंसला दिया वह सचमुच अनमोल है। तुम कभी अपनी मम्मी को दुःखी मत होने देना। आज मैं जो कुछ हूँ तुम्हारे मम्मी के बदौलत हूँ। तुम्हारा पापा आज इतना पढ़ गया है कि उसे पढ़ाने की नौकरी पर लगा दी गई है। तुम्हारा पिता पहले कहानियाँ लिखता था। वह वर्ष 1999 की होगी। फिर भारी-भरकम शब्दों से मिलाकर लेख लिखने लगा। यह वर्ष 2007-08 की बात है। उसके बाद तो वह चिन्तन-मंथन का काम करने लगा जिसे अकादमिक भाषा में शोध कहते हैं। इन सबके बीच उसने सिर्फ अपना हित-लाभ देखा। तुम सब गौण हो गए। आज अपने किए का फल उसे मिला है। वह एक केन्द्रीय विश्वविद्याालय में असिस्टेंट प्रोफेसर है। पर तुम या तुम्हारे भाई या तुम्हारी मम्मी को क्या मिला। तुम्हारे दादा-दादी को भी कहाँ कोई संतान-सुख मिला। यह कहने की बात नहीं है। पीएच़डी. के पीछे का पागलपन उसमें अफ़ीम के नशे की तरह लग चुका था। वह अच्छा नहीं, बहुत अच्छा करने की महत्त्वाकांक्षा से घिर चुका था। अपने पिता को पागलपन के दौरे से बचाना तुम सब का काम है। तुमदोनों उसे बिगड़ने से बचा सकते हो। कम पढ़ना ज्यादा अच्छा है बनिस्पत अव्यावहारिक अथवा असामाजिक होने से। आज के बुद्धिवादी लोग खाते बुद्धि की हैं जबकि जीवन जीते पशु की हैं। अपने पिता को इन्हीं पाश्विक वृत्तियों से बचाना है।

इन्हीं दुआओं के साथ दीप के साथ तुम्हें भी ढेरों बधाई।

तुम्हारा पिता
राजीव 

हँसों, हँसो, जल्दी हँसो!

--- (मैं एक लिक्खाड़ आदमी हूँ, मेरी बात में आने से पहले अपनी विवेक-बुद्धि का प्रयोग अवश्य कर लें!-राजीव) एक अध्यापक हूँ। श्रम शब्द पर वि...