Thursday, May 11, 2017

चाणक्य हमारी परछाई है!


राजीव रंजन प्रसाद
......

हर सेकेंड बदलता है क्षण
समय का चाणक्य
और क्षण मात्र में
नत्थी जिंदगी धूम जाती है आगे की ओर
पिछले कई सालों से
मैंने घंटे की सुई नहीं देखी
सिर्फ देखा-
समय के चाणक्य को
मिनट-दर-मिनट
जिंदगी बदलता हुआ
घंटे की एवज में
इतने रफ्तार से कि
सोचना संभव नहीं,
विचारमग्न होना तो दूर की कौड़ी है
यह इसलिए भी कि-
चाणक्य अतिसुस्त होने के आरोप से बचना चाहता था
बचाव में हैं पूरे लाव-लश्कर
घड़ीनुमा फौज
हर दिनचर्या शुरू होते ही
हो जाती है ख़त्म
साथ के सभी में से
कोई घंटा होना नहीं चाहता
सभी अतिसुस्त होने के आरोप से बचना चाहते हैं
मैं, आप, यह, वह, सब-
उन्हें देख रहा होता है
समय का चाणक्य
अब घंटे में समा जाती है फटाफट खबरें
पचास, सौ...दो सौ तक
लेकिन मैं घंटा होना चाहता हूँ
अतिसुस्त, महासुस्त, सर्वोपरिसुस्त
क्योंकि मेरा सवाल है-
समय के चाणक्य से
वह जो खुद बेहद आक्रामक है, चक्करदार है
जिसकी भाषा बेरंग और चेहरा पाखण्ड की है
जो अंदर-बाहर लिजलिजा और चिपचिपा है
जो केन्द्र में है
जो सत्ता में है
जो हर सुखों का भोक्ता है
जो नेता, मंत्री, नौकरशाह है
जो करोड़पति है, काननूविद् है, प्रोफेसर है
बहुत मिलने के बाद भी
जो सातवें वेतन आयोग के लिए भूखा है
जो हर दुराचारों का स्वयं कर्ता है
जिसके चाल-चरित्र और चेहरे में नहीं साम्य
जिसकी परछाई भी धोखाधड़ी का वाक्यविन्यास है
जिसके पास भाषा इतनी पेशेवर है कि
उससे कोई कभी उऋृण नहीं हो सकता
जाओ, जाओ भाट-चारणों करो अराधना
आँकड़ों, तथ्यों, सूचनाओं को बाँचों
जाओ, दलालों, गद्दारों, पढ़ो देश-विदेश
हमारी मूरत तुम्हारे भीख के ज्ञान की आकांक्षी नहीं
जाओ गदहड़ो, करो राजनीति कि देश आगे बढ़ रहा है
तुम्हें आँख चुराने की मुझसे जरूरत नहीं
कि मैं अतिसुस्त, महासुस्त, सर्वोपरिसुस्त
तुम्हें अपने हिस्से की उपाधि भी दान देता हूँ
कि जिस दिन मरो, तो देखना विश्व बैंक, अन्तरराष्ट्रीय मुद्रा कोष
अन्य वित्तीय संस्थान, काॅरपोरेट एजेंसियाँ, नवसाम्राज्यवादी ताकतें
बौद्धिक सम्पदा अधिकार वाले, पेटेंट वाले
वे सब जो आज तेरी वाहवाही में है
कल, आने वाले कल में
तुम्हारे सीने पर मूँग दल रहे होंगे
तुम्हारा बैंक नीलाम हो रहा होगा
अमीरों के सोने-चाँदी-जवाहारात को लूटा जा रहा होगा
चारों तरफ तानाशाही होगी, वैश्विक एकाधिकार, कंपनी राज
मैं सुस्ताते हुए देख रहा होऊँगा-अमेरिका, ब्रिटेन, चीन, जापान....
वे जब मेरे कंठ में गोली मारेंगे तो पाएँगे कि
मैं एक जबानदार सन् 2017 से बेजुबान होने के ढोंग में हूँ
यह नाटक इतना माकुल होगा कि
गोली कंठ में लगने के बाद भी चीख न होगी
क्योंकि मैं सुस्ता रहा होऊँगा
और आराम के पल में मरना मेरा दुर्भाग्य नहीं
होगा मेरा सौभाग्य
और मेरा समय शुरू होता है अब
सुनो, सुनो,
सुनो, समय का चाणक्य....सुनो
एक असभ्य विश्वविद्यालय का सभ्य स्काॅलर हूँ मैं
मेरी हाय! लगेगी सबको
समय के चाणक्य को सर्वाधिक!
चाणक्य कोई और नहीं-
हमारी परछाई है





हँसों, हँसो, जल्दी हँसो!

--- (मैं एक लिक्खाड़ आदमी हूँ, मेरी बात में आने से पहले अपनी विवेक-बुद्धि का प्रयोग अवश्य कर लें!-राजीव) एक अध्यापक हूँ। श्रम शब्द पर वि...