Thursday, August 28, 2014

‘अभिमन्यु हन्ता’ हमारा अकादमिक जगत

अपनी पीएच.डी. के पाँच  वर्ष पूरे होने पर बच्चों से दो बात......
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प्रिय देव-दीप
 
हर चीज जो गति में है; स्थिति परिवर्तन की दशा में है; अपना आवृत्त पूरा करती ही करती है। चाहे कालावधि छोटी हो या फिर बड़ी। यह अलग बात है कि पूरी परिधि रच लिए जाने के बाद भी यदि उसे वृत्त न माना जाए, तो इसे किसकी बलिहारी कहेंगे? 
 
बच्चों, साहसी अभिमन्यु रणक्षेत्र में युद्ध लड़ते हुए मारा गया, सिर्फ इस कारण नहीं कि उसे चक्रव्यूह भेदने का पूरा ज्ञान नहीं था; बल्कि इस कारण की उसके पिता धनुर्धर अर्जुन ने अभिमन्यु को उस उम्र तक कभी चक्रव्यूह विद्या में निपुण बनाने के लिए सोचा ही नहीं....कोई प्रयत्न ही नहीं किया। आज हमारी शिक्षा-पद्धति इसी अराजक स्थिति में है। जातीय-वर्चस्व के गढ़ कहे जाने वाले विश्ववविद्यालय ऐसी अर्द्धज्ञानियों की खेप/फौज तैयार कर रहे हैं जिन्हें चक्करघिन्नी में  तेरह जगह नाचना-घूमना पड़ता है; लेकिन उनमें से कमासुत शायद ही  कोई आसानी से बन सके। तिस पर विचित्र यह कि कथित धर्मशास्त्री प्रकाण्ड विद्वान विद्यार्थियों को आज भी यह सिखाते हैं-‘नीति रस्मि जिवीषताम्’। जबकि व्यावहारिक दुनिया में सारी नीतियाँ धरी की धरी रह जा रही हैं। अधर्मी नायक हैं; कुकर्मी सेनापति हैं। वैसे खलकामी बुद्धिजन जो पठन-पाठन के अनिवार्य क्रियाकलाप को प्रायः धत्ता बताते दिखते हैं वही उड़ते/छलंगते हुए हमारे भाग्यविधाता बन जाते हैं; विश्ववविद्यालय का अधिनायक बन जा रहे हैं। दरअसल, शास्त्र ही हमें यह भी बताता है कि-‘‘भाग्यवन्तं प्रसूमेयाः माशूरं माय पण्डितम्।’’ अर्थात निरे भौंडी अकिल के, बोलने का शहूर नहीं; पर धन है तो उनके समान वक्ता और बुद्धिमान कुशाग्र बुद्धि दूसरा कोई नहीं; रुपया पास है तो नितान्त कुरुप कोइला से काले-कलूटे भी रूप-लावण्य में एकता है....। 
 
देव-दीप, मुझे ही अदद एक नौकरी के लिए जितनी तकलीफ़ उठानी पड़ रही  है, उसका क्या कहना? अयोग्यता और अक्षमता होती, तो एक बात समझ में आती। खैर! इन प्रपंचों में अपना खूब समय गया; आगे देखें क्या होता है? मुझे सबसे अधिक चिन्ता दीप की है। वह जल्द सुनने की दिक्कतदारी से उबर ले, तो अच्छा! नहीं तो मैं स्वयं को कभी माफ नहीं कर पाउंगा। अपनी पढ़ाई के लिए अपने बच्चे की जिन्दगी से खिलवाड़ कतई समझदारी नहीं है।’’

नौकरी के लिए पहला मोर्चा/संघर्ष प्रथम
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बिहार केन्द्रीय विश्वविद्यालय ने बिना किसी पूर्व सूचना का मेरा आवेदन निरस्त किया और साक्षात्कार(09/07/12) हेतु स्वयं से न्यूतम योग्यता वालों को बुलावा-पत्र भेजा। मुझसे कहा कि आपका परास्नातक विषय ‘जनसंचार एवं पत्रकारिता’ से सम्बद्ध नहीं है। इसके लिए मेरे द्वारा तत्काल किया गया हस्तक्षेप और भेजे गए मेल :
सेवा में,                                        
 दिनांक 07/07/2012
कुलपति एवं अध्यक्ष
चयन समिति
बिहार केन्द्रीय विश्वविद्यालय
   
विषय: ‘कम्यूनिकेशन एण्ड मीडिया स्टडीज’ विषयक पाठ्यक्रम में सह प्राध्यापक पद हेतु प्रारम्भ
नियुक्ति प्रक्रिया के सम्बन्ध में।


महोदय, 
आवेदक, राजीव रंजन प्रसाद, ने बिहार केन्द्रीय विश्वविद्यालय की ओर से हाल ही में प्रकाशित विज्ञापन CUB/Advt/12/2012 के अन्तर्गत ‘कम्यूनिकेशन एण्ड मीडिया स्टडीज’ पाठ्यक्रम में सह प्राध्यापक पद हेतु आवेदन किया है।
इस सम्बन्ध में आवेदक, राजीव रंजन प्रसाद का निम्न पक्ष प्रस्तुत है:-
1.    आवेदक, राजीव रंजन प्रसाद, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में संचालित प्रयोजनमूलक हिन्दी(पत्रकारिता) पाठ्यक्रम के अन्तर्गत सत्र सितम्बर, 2009 से पंजीकृत होकर प्रो0 अवधेश नारायण मिश्र के निर्देशन में ‘संचार और मनोभाषिकी’(युवा राजनीतिज्ञ संचारकों के विशेष सन्दर्भ में) विषय पर पीएच0डी0 उपाधि हेतु कार्य कर रहा है।
2.     आपको सादर सूचित करना है कि आवेदक ने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा दिसम्बर, 2010 में आयोजित राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा ‘जनसंचार एवं पत्रकारिता’ विषय से उत्तीर्ण की है तथा इन्हंे कनिष्ठ अध्येतावृत्ति(JRF) प्रदान किया गया है।
3.    आवेदक ने प्रयोजनमूलक हिन्दी(पत्रकारिता) विषय से परास्नातक किया है जो एक व्यवसायिक पाठ्यक्रम है। यह पाठ्यक्रम विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा 1980 के दशक में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय को प्रदान किया गया जो पूर्णतः ‘जनसंचार एवं पत्रकारिता’ विषय के समकक्ष है और इस पाठ्यक्रम का विद्यार्थी विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा आयोजित राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा/कनिष्ठ अध्येतावृत्ति(NET/JRF) के लिए पूरी तरह अहर्य है। आवेदक स्वयं ही इसका प्रमाण है।
4.    आवेदक पीएच0डी0 उपाधि हेतु जिस विषय पर कार्य कर रहा है वह न सिर्फ ‘जनसंचार एवं पत्रकारिता’ वरन् अन्तर्विषयी अनुसन्धान के अन्तर्गत ‘मनोभाषाविज्ञान’, ‘राजनीति विज्ञान’, ‘समाज विज्ञान’, ‘मनोविज्ञान’ आदि विभिन्न विषयों में भी पर्याप्त दक्षता एवं योग्यता की माँग करता है।

अतः श्रीमान् से विनम्र निवेदन है कि आवेदक द्वारा यहाँ प्रस्तुत उपर्युक्त बिन्दुओं के आलोक में सह प्राध्यापक पद हेतु भेजे गए इस आवेदक के आवेदन पर सह्नदयतापूर्वक विचार किया जाए।  
एतदर्थ आभारी रहेगा।
   
 
  आवेदक
राजीव रंजन प्रसाद
अनुसंधित्सु, हिन्दी विभाग
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय
वाराणसी-221 005।
(जारी....)

हँसों, हँसो, जल्दी हँसो!

--- (मैं एक लिक्खाड़ आदमी हूँ, मेरी बात में आने से पहले अपनी विवेक-बुद्धि का प्रयोग अवश्य कर लें!-राजीव) एक अध्यापक हूँ। श्रम शब्द पर वि...