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राजीव रंजन प्रसाद यानी प्रो. आर्जीव के बारे में:
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पढ़िए अगले माह प्रो. आर्जीव का विस्तृत आलेख :
‘प्रधानमंत्री ने अपने संसदीय क्षेत्र का आदर्श गांव किसे चुना है?’
राजीव रंजन प्रसाद यानी प्रो. आर्जीव के बारे में:
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प्रो.
आर्जीव की पैनी निगाह में भारतीय जनता पार्टी की हर एक कदम का नज़रबन्द
होना प्रीतिकर है। आर्जीव की ख़ासियत यह है कि वे सीधी बात तपाक से कह
देते हैं; इसीलिए हाशिए पर हैं। कोई सम्मान-पुरस्कार उनके नाम नहीं। कोई पद
आवंटित नहीं। कोई सरकारी रहवास उनके नाम से एलाॅट नहीं; तब भी कई-कई लोग प्रो.
आर्जीव के लिखे से सोलह आना भयभीत रहते हैं; इसे कहते हैं-‘सांच का ताप’।
मोदी सरकार अबकी बार आ तो गई है, लेकिन जमी या गई तो प्रो. आर्जीव की
भूमिका निःसन्देह उल्लेखनीय होगी। आर्जीव जनसाधारण के पैरोकार या हिमायती भर नहीं हैं; वे उस जातीय वर्चस्व के भी खिलाफ हैं जिनकी बांसुरी बजाती अयोग्य/अक्षम जातियां सरकारी लोकतंत्र के शीर्ष पदों पर आसीन है; अकादमिक ठिकानों पर जिनका कब्ज़ा है, मठ भी उनका है और मठाधीशी भी उनकी ही चलती है। प्रो. आर्जीव की कलम ने इन्हीं कूलबोरनों से लोहा लेने को ठाना है। पिछले दिनों काशी हिन्दू विश्वविद्यालय ने यूजीसी द्वारा प्रदत 10,000/- रुपए की कंटीजेंसी बिल छह माह तक भागदौड़ करने के बावजूद नहीं दी, तो इस बार उसके दुगने रकम की कंटीजेंसी उन्होंने यह कहते हुए छोड़ दी कि-''इतने रुपयों से जितने दिन बीएचयू कैम्पस में बने विश्वनाथ मंदिर का घास कट सके...कटवा लेना आपलोग; मैं यहां घास काटने नहीं शोध करने आया हूं।''
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