Sunday, May 13, 2018

बगैर मेरुदण्ड की भारतीय राजनीति में ‘मनस्वी’ राजनीतिज्ञ प्रचार से नहीं विचार से पैदा होंगे!


‘जिस समाज के लोग अच्छे विचारों का सम्मान करना भूल जाते हैं, वह स्वमेव नष्ट हो जाता है!’
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राजीव रंजन प्रसाद

भारतीय दर्शन में ‘मन’ की महिमा अपरंपार है। इन्द्रियों पर नियंत्रण मन द्वारा संभव है। आजतक मनुष्य ने नानाविध-बहुविध जितने भी बदलाव किए हैं उन सबका कर्मस्थली मस्तिष्क है। संकल्प-विकल्प की चेतना इसी मन से सृजित, निर्मित, संचरित और संस्कारित है। वासुदेवशरण अग्रवाल मन का स्थूल-सूक्ष्म विश्लेषण करते है। उनकी दृष्टि में-‘मन ही मनुष्य का दूसरे मनुष्य से भेदक है। जो मनुष्य संकल्पवान मन का भरण करते हैं, वे ही राष्ट्र की निधि हैं।’ इसी में आगे वह मन को ‘कल्पवृक्ष’ बताते हैं, तो कारण कि भारतीय दर्शन में मन की कई अवस्थाएँ और भूमिकाएँ निर्धारित हैं। दरअसल, बालक और युवा में जो अन्तर है, उसमें मन की अवस्था का भेद अधिक है। अस्तु, आधुनिकता और उत्तर आधुनिकता के शब्दवृत्त में चाहे हम जितने भी तथ्य, सूचना, आँकड़े, विवरण, उदाहरण आदि जुटा ले या उन्हें प्रक्षेपित कर लें; लेकिन मन की वृत्ति के आगे उनका मूल्य कुछ भी नहीं है। इस कारण मन की अर्थवत्ता का ज्ञान आवश्यक है। भारतीय चिंतक-मनीषियों की दृष्टि में आज ‘अनेक आचार्यों द्वारा विद्यालयों में शिक्षा के आयोजन इसीलिए है कि सच्चे अर्थों में संकल्पवान्, मनःशक्ति से धनी, मनुष्यों का निर्माण किया जाए।’ 


(जारी...

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