Friday, November 20, 2015

ओसिगा: गल्प में नवग्रह

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ओसिगा एक ग्रह का नाम है। इस ग्रह पर बसी आबादी बहुत अधिक तो नहीं; लेकिन तकरीबन साढ़े पाँच लाख है। लोग धरतीनुमा नगर-महानगर या गाँव-कस्बे की जगह गुफाओं में करीने से रहते हैं। उनकी सज-धज से आधुनिकता और उत्तर-आधुनिकता लजा जाए। ओसिगा की भाषा और लिपि सांकेतिक और चित्रात्मक है। ध्वनियों का बहुत कम इस्तेमाल होता है। मूक भाषा-प्रयोग के पीछे मुख्य वजह आॅक्सीजन की मात्रा का वायुमंडल में कम होना है।

यहाँ की साम्राज्ञी आनियो आना हैं। उनकी देा बेटियाँ हैं। बड़ी का नाम आना ओरि है, तो छोटी का नाम आनो आया। दोनों साम्राज्ञी की बेटी होने का तनिक गुरूर नहीं रखती हैं। वह सबसे सामान्य व्यवहार करती हैं और लोग भी उसी तरह उनसे लाड़पूर्वक बातचीत करते हैं। वह अन्य बच्चों से जरा भी विशेष नहीं दिखाई देती हैं। यह खासियत वहाँ के राजशाही के चरित्र को दर्शाता है जिसमें वह कायदे से रचे-बुने गए हैं।

ओसिगा में जनतंत्र है और लोग सामूहिकता को वरीयता देते हैं। खून-खराबा का नामो-निशान नहीं है तथा प्रकृति ही एकमात्र देवता है। खान-पान में हरी पतियों का प्रयोग सर्वाधिक होता है जिन्हें वे उबाल कर खाते हैं। वह विभिन्न पौधों से जायकेदार रस निकालते हैं और उसे पृथ्वीवासियों की तरह जूस के रूप में इस्तेमाल करते हैं। पेड़-पौधे पृथ्वी की तरह ही हैं; लेकिन वे कद में बौने अधिक हैं। वह बहुत जल्दी फल-फूल से लद जाते हैं। सूरज की रोशनी सालों भर पृथ्वी की तरह ही कम-अधिक होती-रहती और मौसम-ऋतुएँ बदल जाते हैं। दिन-रात मिलाकर पृथ्वी से चार से छह घंटे कम होते हैं। लेकिन यहां के लोग पर्याप्त नींद लेते हैं; किन्तु काम भी फुर्तीले ढंग से करते हैं। युवाओं में सबसे अधिक कार्य करने की क्षमता देखी जा सकती है। शारीरिक और मानसिक श्रम में कोई श्रम-मूल्य का विभाजन नहीं है।

ओसिगा में स्त्री-पुरुष में भेद नहीं है। बच्चे बुजुर्ग की तरह सम्मानित हैं। बच्चों को भगवान का रूप माना जाता है। बच्चों को सीखाने का काम ओरियनो नामक समूह करता है जिसका मुखिया ओरिना होता है। ओरिनों की मण्डली को सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है क्योंकि वह ओसिगा में प्रकृति के बाद प्रथम पथ-प्रदर्शक होता है। साम्राज्ञी और उनके सिपहसालार अपने बच्चों को वहीं पढ़ाते हैं। वहां योग्यता परीक्षा के लिए व्यावहारिक क्षमता एवं कार्य प्रदर्शन को मानक माना जाता है।.....

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हँसों, हँसो, जल्दी हँसो!

--- (मैं एक लिक्खाड़ आदमी हूँ, मेरी बात में आने से पहले अपनी विवेक-बुद्धि का प्रयोग अवश्य कर लें!-राजीव) एक अध्यापक हूँ। श्रम शब्द पर वि...