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May 18
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प्रतिष्ठा में,
प्रो. गिरीश चन्द्र त्रिपाठी,
कुलपति, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय।
महोदय,
आप तमाम कठिनाइयों के बीच इस बार ‘हिन्दी विभाग’ के लिए विज्ञापित सभी शैक्षणिक पदों पर योग्य प्राध्यापकों की नियुक्ति करा लेंगे, ऐसी शुभेच्छा है। मैंने स्वयं भी 2013 ई. में इसी विभाग के प्रयोजनमूलक हिन्दी पत्रकारिता विषय के लिए ओबीसी कोटे से आवेदन किया था जो विज्ञापन किसी कारणवश आपकों ख़ारिज करनी पड़ी। फिर आपने पुनःविज्ञापित की। फिर से रद्द किया। फिर निकाला और इस बार भी कैंसिल करना पड़ा। यह विज्ञापन ऐसा रहस्यमयी तिलिस्म हो गया है या कि अमृत-मंथन जो पूर्णाहुति तक पहुँच ही नहीं पा रहा है। योग्य आवेदक मारे-मारे फिर रहे हैं। मैं भी ठोंकर खाया और पहली प्राथमिकता और लम्बे इंतजार के बावजूद आप अंतिम रूप से नियुक्ति हेतु आवश्यक औपचारिकता नहीं पूरा करा सके। इस बार कोर्ट के आदेश के बाद पुनःविज्ञापन हुए हैं जिससें हमारे जैसे लोगों को काफी उम्मीदें हैं।
लेकिन मैं इस दौड़ में नहीं शामिल हूँ। और अब किसी भी स्थिति में या भविष्य में कभी किसी भी रूप में मैं अपना नाम काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से जोड़ने सम्बन्धी घुसपैठ नहीं करूँगा। पर इस बात को सदैव स्वीकार करूँगा कि आज मैं जो हूँ या मेरे पास जो कुछ है; वह काशी हिन्दू विश्वविद्यालय द्वारा ही प्रदत है।
यह बात मुझे आजीवन सालेगी/कचोटेगी कि जिस विश्वविद्यालय और विभाग ने मुझे शिक्षित-प्रशिक्षित-दीक्षित किया उसके गौरव और गरिमा की प्रशस्ति में मैं वह योग नहीं दे पा रहा हूँ जो मैं वहाँ एक अध्यापक के तौर पर कर सकता था; महामना पंडित मदन मोहन मालवीय के इस बगीचे को सींचने हेतु अपना पूर्ण दायित्व निभा सकता था।
आप सब भावनाओं को स्थान नहीं देते हैं और न ही अंतरात्मा की पुकार को सुनना चाहते हैं; किन्तु मुझे हमेशा इस बात का दुःख् होगा। आवश्यक अर्हता को पूरा करने में मैंने अपनी जान लगा दी, पर मुझे जो उपेक्षा और प्रवंचना मिली वह मेरे सीने पर भारी बोझ-सा है।
मैं अपना शोध-कार्य इसीलिए अब तक रोके रखा कि शायद मैं अपनी भीतरी इच्छा पूरा कर सकूँ, लेकिन अब कोई आसार नहीं है। अगस्त,2017 में शोध के अधिकत आठ वर्ष पूर्ण होने को है।
आप मेरे शोध-कार्य का सम्मान करेंगे और उसके महत्त्व को समझेंगे; इसी आशा और विश्वास के साथ आपके सुखी और सानंद रहने की अंतःकामना करता हूँ।
सादर,
भवदीय
राजीव रंजन प्रसाद
शोध-छात्र, हिंदी विभाग
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय
शोध/हिन्दी/सितम्बर, 2009/600
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