Saturday, February 24, 2018

रजनीगन्धा की महक को महसूसती रूह और ‘जंगली फूल’



रिपोर्ट: राजीव रंजन प्रसाद
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अरुणाचल की सुपरिचित लेखिका और पेशे से हिन्दी प्राध्यापिका डाॅ. जोराम यालाम नाबाम की सद्यःप्रकाशित उपन्यास ‘जंगली फूल’ का विमोचन हिन्दी के प्रख्यात विद्वान एवं जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय से सेवानिवृत्त प्रो. वीर भारत तलवार; दक्षिण भारत हिन्दी प्रचारिणी सभा के पूर्व-अध्यक्ष प्रो. ऋषभदेव शर्मा तथा अरुणाचल के प्रतिष्ठित साहित्यकार येशे दोरजी थोंगची के हाथों राजीव गाँधी विश्वविद्यालय के लघु प्रेक्षागृह में हुआ। इस अवसर पर हिन्दी विभाग के प्राध्यापकों के अतिरिक्त राजीव गाँधी विश्वविद्यालय के कुलसचिव प्रो. तोमो रीबा, वित्ताधिकारी ए. मित्रा, दोईमुख गवर्नमेंट काॅलेज के प्रिंसीपल एम. क्यू. खान, आईएफसीएसपी अध्यक्ष नाबाम अतुम, विभिन्न विभागों के प्राध्यापकगण एवं डाॅ. यालाम के अपने सगे-सम्बन्धी-शुभचिन्तक उपस्थित थे।
यह पुस्तक यश पब्लिकेशन से छपकर इसी वर्ष आई है। लेखिका के इस पहले उपन्यास का स्वागत उनके पहले कहानी-संग्रह ‘साक्षी है पीपल’ की ही भाँति पूरे जोर-शोर से हुआ है। कार्यक्रम के आरंभ में ही संचालन कर रही डाॅ. जमुना बीनी तादर जो आरजीयू के हिन्दी विभाग में प्राध्यापिका हैं; ने कहा कि इस पुस्तक में जिस तानी नामक मिथकीय पुरुष की चर्चा है उसे आबोतानी पुरखा, पूर्वज कहे जाने के बावजूद समुचित न्याय नहीं मिला। उसके सम्बन्ध में जो भी लोकगाथाएँ प्रचलन में हैं उसमें तानी के चरित्र को घृणास्पद चरित्र के रूप में दिखाया गया है। अर्थात् तानी के साथ लोक ने न्याय नहीं किया, अभी तक उसे न्याय नहीं मिला।
गणमान्य अतिथियों सहित सभागार में उपस्थित समस्त लोगों का स्वागत करते हुए राजीव गाँधी विश्वविद्यालय के भाषा-संकायाध्यक्ष प्रो. हरीश कुमार शर्मा ने डाॅ. यालाम के समग्र व्यक्तित्व और उनके लेखन के बारे में चर्चा की। उन्होंने यह भी कहा कि आबोतानी की असल सचाई क्या है इसका लेखिका ने बड़े संवेदनशील ढंग से पड़ताल किया है। डाॅ. जोराम यालाम नाबाम अपने आत्म-वक्तव्य को देते हुए अत्यन्त भावुक हो उठी। उन्होंने कहा कि आबोतानी की कथा मेरे भीतर एक दर्द बनकर उतरी जिसे मैंने लोक-प्रचलन में मान्य एवं स्वीकृत स्थिति में देखा-सुना था। मुझे बार-बार लगा कि इतना घृणित अपराध करने वाला व्यक्ति सम्पूर्ण तानी समुदाय के वंश का पिता यों ही नहीं कहा गया होगा।
इस पुस्तक विमोचन हेतु ख़ास तौर पर मुख्य वक्ता के रूप में आमंत्रित प्रो. वीर भारत तलवार ने बेहद मुदित भाव से इस कृति की प्रशंसा करते हुए कहा कि-‘‘इस उपन्यास को रचने के पीछे बड़ा ‘विज़न’ है। एक दार्शनिक दृष्टि इसको पढ़ते हुए परत-दर-परत खुलती है जो महत्त्वपूर्ण है। वास्तव में ‘जंगली फूल’ हिन्दी में आदिवासी जनसमाज और उसकी अस्मितामूलक मूल्यों पर केन्द्रित एक दुर्लभ पुस्तक है। लोककथाओं में दर्शन अभिव्यक्त ही नहीं होता बल्कि वह विस्तारित भी होता है। लेखिका ने इसी अन्तर्वस्तु को अद्भुत शिल्प-विधान और विवेक-विश्वास के साथ रचा-बुना है। यह कृति यथर्थ की पुनरव्याख्या है। पाठ का पुनर्पाठ है। यह पाठ लोककथाओं-लोकगाथाओं की विकास-यात्रा है जिसे लेखिका ने बड़े विज़न और सांस्कृतिक दर्शन की धरातल पर निर्मित किया है। यह भी उल्लेखनीय बात है कि लेखिका की दृष्टि इतिहास को यथार्थपरक तरीके से देखती है।’’ प्रो. तलवार ने रेखांकित करते हुए कहा कि-‘‘इस उपन्यास की बड़ी खूबी लेखिका के दृष्टिकोण का प्रगतिशील और भविष्योन्मुखी होना है। यह दृष्टि डायन-प्रथा, दास-प्रथा, अंधविश्वास, परस्पर युद्ध, स्त्रियों पर अत्याचार आदि का विरोध करता है। अगर यह अंतःदृष्टि नहीं होती, तो लेखिका द्वारा आबोतानी वंश समुदाय के तानी के व्यक्तित्व का इतना बृहद् चिन्तन-विश्लेषण संभव नहीं था। जहाँ तक भाषा का सवाल है तो लेखिका की भाषा सूक्तियों की तरह लिखी गई हैं जो मुग्ध करती हैं। लेखिका के गद्य में भी कविता है और प्रभावपूर्ण चित्रण बरबस हमें लुभाता है। यालाम के उपन्यास की स्त्रियाँ चेतस और प्रतिरोधी स्वभाव की हैं जो अपने ही बन्धनों के गर्भ से बनती हैं। स्त्रियों की बगावती आँखों से ही निर्मलता की गंगा बहती है। यह उपन्यास इन अर्थों में प्रेम का शास्त्र रचती हैं। यह प्रेम समाज की चिंता करने वाला प्रेम है। इस उपन्यास के मुख्य पात्र तानी का चरित्र विलक्षण है। लोककथाओं में प्रचलित धारणाओं को अस्विकार करते हुए लेखिका ने तानी के मानवीय व्यक्तित्व की यथार्थपूर्ण पड़ताल की है।’’
लोकार्पण के मौके पर हैदराबाद से पधारे विद्वान प्रो. ऋषभदेव शर्मा ने डाॅ. यालाम को शुभकामना देते हुए कहा कि-‘‘डाॅ. जोराम यालाम नाबाम अरुणाचली अस्मिता को सचेतन अभिव्यक्ति प्रदान करने वाली विदूषी लेखिका हैं। यह अपने लेखन में अरुणाचली-स्त्री के प्रति बेहद जागरूक, सजग और संघर्षशील दिखाई देती हैं। डाॅ. यालाम हिन्दी के नई पौध की उत्कृष्ट लेखिका हैं। यह कृति सिर्फ हिन्दी में नहीं बल्कि भारत की विभिन्न भाषाओं में और जनसमाज तक पहुँचनी चाहिए।'' उन्होंने अपने सारपरक वक्तव्य में इस उपन्यास की खूबियों को बताते हुए कहा कि-''जिस सद्भावना और शिव-संकल्प के साथ यह शोधपरक कृति ‘जंगली फूल’ के रूप् में सामने है, यह बड़ी उपलब्धि है। अपनी कथावस्तु में यह रचना मनुष्य के समद्वा खड़े शाश्वत प्रश्न से टकराती हैं, उससे मुठभेड़ करती हैं जो कि मुख्यतया स्त्री पुरुष सम्बन्ध की वजह से अधिक प्रासंगिक हैं। यद्यपि कृष्ण की भाँति अरुणाचल के परमपिता तानी के बारे में भी बहुत सारे वाद-प्रतिवाद-प्रवाद आदि प्रचलित हैं; तथापि यह पुस्तक तानी के सम्पूर्ण व्यक्तित्व को खुली किताब की तरह पाठक के सामने रखता है। इस तरह लेखिका की ह पुस्तक अरुणाचली सांस्कृतिक लोक-परम्परा का नया आख्यान है जिसे मौलिक रूप से सृजित करने हेतु लेखिका प्रतिबद्ध होने के अतिरिक्त अभिशप्त-सी हैं।''
इसी क्रम में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित अरुणाचल के प्रतिष्ठित साहित्यकार येशे दोरजी थोंगची ने अपने संक्षिप्त वक्तव्य में कहा कि-‘‘आबोतानी की कथाएँ मिथकीय रूपक के रूप में लोक-प्रचलन में हैं। जोराम यालाम नाबाम ने इन रूपकों के पीछे की असली सचाइयों को ज़ाहिर करने का संवेदनशील प्रयास किया है। यह सम्पूर्ण भारतीय साहित्य के लिए रचनाधर्मिता के स्तर पर एक ऐतिहासिक कृति है।’’
इस मौके पर बी.के. मिशन स्कूल के बच्चों ने अपने समूह-नृत्य की शानदार प्रस्तुति दी। और अंत में हिन्दी के सहायक प्राध्यापक डाॅ. अभिषेक कुमार यादव ने सभी को तहे दिल से धन्यवाद ज्ञापित किया। उन्हों आखिर में डाॅ. जोराम यालाम नाबाम की इस उपलब्धि हेतु लेखिका के पति नाबाम विवेक को भी शुभकामना सहित धन्यवाद ज्ञापित किया।
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चित्र: http://arunachalobserver.org से साभार

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