Saturday, July 11, 2015

यह तो अपनी लड़ैया रे!

लोक शिकायत आवेदन पत्र (Reg. No. PRSEC/E/2015/01128 dated 06 Feb 15) के सन्दर्भ में बिहार केन्द्रीय विश्वविद्यालय द्वारा ग़लत एवं निराधार सूचना दिए जाने के विरुद्ध शिकायत-पत्र।

Rajeev Ranjan rajeev5march@gmail.com

AttachmentsJul 9 (3 days ago)
to ramjipandey.edu
प्रतिष्ठा में,

श्री रामजी पाण्डेय(यू/एस)
अवर सचिव
मानव संसाधन विकास मंत्रालय(सूचना प्रकोष्ठ)
उच्च शिक्षा विभाग
515-B, कैब-1, शास्त्री भवन
नई दिल्ली-110001

विषयः लोक शिकायत आवेदन पत्र (Reg. No. PRSEC/E/2015/01128 dated 06 Feb 15) के सन्दर्भ में बिहार केन्द्रीय विश्वविद्यालय द्वारा ग़लत एवं निराधार सूचना दिए जाने के विरुद्ध शिकायत-पत्र।

मान्यवर,

1. मुझे प्रसन्नता है कि शिकायतकर्ता राजीव रंजन प्रसाद द्वारा उपर्युक्त विषय के सन्दर्भ में राष्ट्रपति कार्यालय को प्रेषित लोक शिकायत आवेदन पत्र (Reg. No. PRSEC/E/2015/01128 dated 06 Feb 15) को बिहार केन्द्रीय विश्वविद्यालय ने अपने संज्ञान लिया है। 
2. इस सन्दर्भ में विश्वविद्यालय ने विधिवत जांच-समीक्षा एवं अवलोकन-विश्लेषण के पश्चात इसलोक शिकायत के निपटारा सम्बन्धित पत्र(CUB/PG/11/2015) शिकायतकर्ता राजीव रंजन प्रसाद को प्रेषित करने का महती कार्य किया है; यह पत्र शिकायतकर्ता को दिनांक 30 जून 2015 को प्राप्त हुए हैं। इस पत्र की एक प्रतिलिपि आप तक भी अग्रसारित की गई है।
3. यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि बिहार केन्द्रीय विश्वविद्यालय ने शिकायत सम्बन्धी उपलब्ध साक्ष्यों अथवा अभिलेखों के जांचोंपरान्त जो निर्णय सुनाया है; वह पूरी तरह ग़लत और निराधार है। इसके विरुद्ध उपयुक्त एवं पर्याप्त साक्ष्य मेरे पास मौजूद है।
4. ध्यातव्य है कि मैं अपने पास उपलब्ध सभी साक्ष्य एवं अभिलेख आपको इस ई-मेल के साथ संलग्न कर भेज रहा हूं जिसमें बिहार केन्द्रीय विश्वविद्यालय द्वारा मुझे प्राप्त हुआ पत्र भी संलग्न है। इसके अतिरित मैंने प्राप्त पत्र के प्रत्युत्तर में जो ई-मेल बिहार केन्द्रीय विश्वविद्यालय के माननीय कुलपति महोदय को दिनांक 01 जुलाई, 2015 को ई-मेल द्वारा भेज चुका हूं, उसकी पीडीएफ फाइल भी संलग्न कर आप तक भेज रहा हूं।
5.अपने शोध-कार्य के अंतिम पड़ाव पर इस प्रकरण ने मुझे न सिर्फ शारीरिक-मानसिक पीड़ा पहुंचाई है बल्कि अपने शोध-निर्देशक के साथ बने सुमधुर रिश्ते को भी प्रभावित कर डाला है। 
6. बेहद पिछड़े इलाके और सामान्य शिक्षित घर से होने के कारण मैं व्यक्तिगत तौर पर इस सन्दर्भ में आगे कुछ भी प्रकियागत कार्रवाई कर पाने में असमर्थ महसूस कर रहा हूं।
7. मैं श्रीमान् को बताना चाहता हूं कि बिहार केन्द्रीय विश्वविद्यालय से शुरू हुई मानसिक-शारीरिक प्रताड़ना कई केन्द्रीय विश्वविद्यालयों के साक्षात्कार के अन्तर्गत घटित हुई। इसके बाद अकादमिक सक्रियता को अपने ‘ज्ञान, क्रिया और इच्छा’ के संसक्ति के बलबूते आगे जारी रख पाना मुझे लगभग असंभव-सा प्रतीत हो रहा है।
8. श्रीमान् यदि दुनिया ऐसी ही चलती है, जनतंत्र का अर्थ वास्तव में इसी तरह परिचालित होता है, शोध-कार्यों का मूल्यांकन काम देखखकर नहीं नाम और जाति से उत्कृष्ट घोषित किया जाता है, तो सचमुच अपनी भाषा और शब्दों में रोने-धेने का न कोई सार्थकता समझ में आती है और न ही औचित्य पता चलता है। अतः इसे बदला जाना अत्यन्त आवश्यक है।
9. यह और बात है कि काशी हिन्दू विश्वविद्यालय ने शोध-कार्य के अन्तर्गत मुझे शोध-अध्येतावृत्ति में अतिशय विलम्ब और मनमाने तौर-तरीके से बुरी तरह परेशान किया। अब मुझे लगने लगा है कि सारा दोष स्वयं का है क्योंकि मेरा मन-मस्तिष्क ग़लत ढर्रे को चुनने से इंकार कर देता है जो अंततः मेरे लिए घोर यातना का कारण बनती हैं। यह सोच पहले नहीं थी, अब बनने लगी है।
10. अंत में मैं अपनी ओर से एक मानवीय गुहार लगा रहा हूं कि मुझे तत्सम्बन्धी प्रकरण में उचित न्याय दिलाया जाए, मेरा भी पक्ष् सुना जाए, मेरे पास उपलब्ध साक्ष्यों/सबूतों या अभिलेखों की यथोचित जांच कराई जाए; ताकि इस तरह की घोर यातना और असह्य पीड़ा से दूसरे शिकायतकर्ता/आवेदनकर्ता बच सकें।

श्रीमान् मेरे पिता और पूरे परिवार की तरह आप भी अपने सुपुत्र-सुपत्रियों से काफी अपेक्षाएं रखते होंगे; कृपया मेरे घरवालों के अटूट विश्वास की लौ और मेरे अडिग संस्कार को इस दुर्भाग्यपूर्ण घटना की बलि न चढ़ने देंगे, ऐसी मैं आशा रखता हूं।
सादर,

शिकायतकर्ता/आवेदनकर्ता
राजीव रंजन प्रसाद
प्रयोजनमूलक हिन्दी
वरिष्ठ शोध अध्येता(जनसंचार एवं पत्रकारिता)
हिन्दी विभाग
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय
वाराणसी-221 005

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