Friday, September 11, 2015

नवजागरण के अंतःद्वीप

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(रजीबा की क्लास)

नवजागरण की असल ताकत का अंदाजा लगाने के लिए कुछ प्रवृत्तियों पर ध्यान देना आवश्यक है। यथा: 

ब्रह्मसमाज-सुधारवादी दृष्टिकोण, 
भारतेन्दु हरिश्चन्द्र: देशज भाषा का प्रताप
आर्यसमाज-तार्किकता,
ज्योतिबा फुले-कर्मकाण्ड विरोध,
 विवेकानंद-आध्यात्मिक अन्तर्भावना का उद्बोधन
श्री अरविन्द: अतिमानस की सहजानुभूति
रवीन्द्रनाथ टैगोर: अंतःअनुशासनिक एवं अंतःप्रेरित राष्ट्रवाद
तिलक-तेजस्विता,
 गांधी-विनयशीलता,
 भगत सिंह-क्रांतिधर्मिता,
 प्रेमचन्द-गतिशील जीवनदृष्टि,
अम्बेडकर-अस्पृश्यता निवारण 

उपर्युक्त चुनिंदा कारकों को बौद्धिक दृष्टि से ‘अंडरस्टिमिट’ किया जाना अमानुषिक होने का परिचायक है। अतः आइए इस पर समग्र विचार-दृष्टि से बात करें। हम प्राचीन परम्परा के पोषण में प्रवृत्त (अंध)तत्वों अथवा सनातन धर्म के (अंध)अनुकरणकर्ताओं पर बिना गंगाजल उलीचे उन कारकों की पहचान करें जिससे नवजागरण की मुकम्मल पहचान बनी। बौद्धिक जागरण, स्वतन्त्रता की आकांक्षा, सुधारवादी दृष्टिकोण एवं लोककल्याणकारी वैचारिकी का उत्थान-उत्कर्ष सही मायने में संभव हुआ। इसके लिए आलोचकीय अनुशासन जरूरी है। विवेक-विक्षोभ की सम्यक् दृष्टि होना अनिवार्य है। अन्यथा फिसलन भरे मौजूदा ज़मीन पर गिर जाने अथवा कीचड़ से सन जाने का खतरा जबर्दस्त है। .... 

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हँसों, हँसो, जल्दी हँसो!

--- (मैं एक लिक्खाड़ आदमी हूँ, मेरी बात में आने से पहले अपनी विवेक-बुद्धि का प्रयोग अवश्य कर लें!-राजीव) एक अध्यापक हूँ। श्रम शब्द पर वि...