Tuesday, September 8, 2015

अध्यापक


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एक घण्टे की कक्षा। आफ़त जबर्दस्त। विद्यार्थी चाव से सुनते हैं। उनके अनुभूति और अभिव्यक्ति में अंतराल है। बीच-बीच में बतियाने की कोशिश। उन्हे जानने का प्रयास। वह कुछ बोले, तो जानें। बाकी सब सुघड़। मनोरम। अति उत्तम। मैं छात्रों को नया दे पा रहा हूं, कह पा रहा हूं...यह बाद की बात है। लेकिन इतना सीखा कि अध्यापक बोलने से पहले अंतहीन कठिनाइयों से जूझना सीखता है। बिना सीखे वह सीखा ही नहीं सकता। कुछ दे ही नहीं सकता। 

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--- (मैं एक लिक्खाड़ आदमी हूँ, मेरी बात में आने से पहले अपनी विवेक-बुद्धि का प्रयोग अवश्य कर लें!-राजीव) एक अध्यापक हूँ। श्रम शब्द पर वि...