Tuesday, August 25, 2015

इन दिनों


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मुझे हार्दिक प्रसन्नता है कि मैं आजकल ‘ककहारा’ सीख रहा हूं। गिनती एवं पहाड़ा। कई चीजें एकदम आरंभ से शुरू। इस दुनिया के बारे में, लोगों के बारे में...सबकुछ नएपन के साथ साध रहा हूं। लोगों ने कहा, इससे आपके सेहत में सुधार होगा। बाकी चीजें औरों के लिए छोड़ दीजिए।

शुक्रिया! आपसब मेरे प्रति कितने ईमानदार हैं, शुभेच्छू भी। मैं इस अहसास तले इस कदर दबा हूं कि आप सबकी सदाशयता के प्रति सिर्फ मौखिक रूप से कृतज्ञ मात्र हो सकता हूं।

मेरे जैसे एक औसत दरजे के विद्याार्थी को आपसब ने जो मान दिया है, उसे मैं शब्दों में अभिव्यक्त कर पाने में असमर्थ महसूस कर रहा हूं।

धन्यवाद!

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हँसों, हँसो, जल्दी हँसो!

--- (मैं एक लिक्खाड़ आदमी हूँ, मेरी बात में आने से पहले अपनी विवेक-बुद्धि का प्रयोग अवश्य कर लें!-राजीव) एक अध्यापक हूँ। श्रम शब्द पर वि...