Monday, July 11, 2016

स्मरणीय


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''मैंने पत्रकारिता का लंबा और टेढ़ा रास्ता चुना। सीधा रास्ता यह है कि अपने विचारों को धड़ाधड़ लिखकर पत्रकारिता में अपनी जगह और पहचान बना लें।लेकिन पता नहीं किन कारणों से मैंने यह रास्ता नहीं चुना।जो रास्ता मैंने चुना,वह जरा कठिन है। यह बात मैं कोई शहीदी मुद्रा या प्रशंसा पाने के उद्देश्य से नहीं कह रहा हूं। मुझे लगा कि मेरे लिए यही रास्ता ठीक है। पाठक तक एक व्यक्ति की बात पहुंचाने की बजाय मैंने सोचा कि हम ऐसा साधन विकसित करें जिससे बात संस्थागत रूप में पाठक तक पहुंचे। मैं रहूं या न रहूं, व्यक्ति रहे या न रहे,लेकिन वह बात लोगों तक पहुंचती रहे। इसमें मेरे लिए यह महत्त्वपूर्ण नहीं था कि मैं क्या लिख रहा हूं बल्कि मेरे लिए यह महत्त्वपूर्ण था कि और लोग क्या लिख रहे हैं। मेरे लिए महत्त्वपूर्ण बात यह थी कि हम किस तरह की पत्रिका निकाल रहे हैं या हमने किस तरह की टीम बनाई है। पत्रकारिता के अपने शुरुआती दिनों में मैं खूब लिखता था। पर जैसे-जैसे समझ बढ़ी, मुझे लिखने से डर लगने लगा कि मैं यह क्या कर रहा हूं।'' - एसपी यानी सुरेन्द्र प्रतप सिंह; कालजयी पत्रकार संपादक
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हँसों, हँसो, जल्दी हँसो!

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