Tuesday, July 12, 2016

कुछ नहीं !


.......

कल रात एक अजीब सपना देखा।

सोए में किसी ने पूछा-‘कितना जानते हो?’
झटके से मुँह से निकला-‘कुछ नहीं !’

वह मेरे बाद वाले से पूछने लगे, फिर उसके बाद वाले से, फिर उसके भी बाद वाले से।
सब कुछ न कुछ कह रहे थे। बहुत कुछ कह रहे थे।

मैं रोने लगा, क्योंकि मुझे भी अपने बारे में बहुत कुछ कहना था। इतने सालों से कितना पढ़ा, कितना लिखा...और सबसे अधिक कि मैं क्या नहीं लिख सकता, किस बारे में नहीं लिख सकता, कितना नहीं लिख सकता आदि-आदि ढेरों बातें बतानी थीं।

लेकिन मेरा समय बीत गया और मैं अवसर गँवा चुका था।

सुबह उठने पर मेहरारू ने बच्चों को स्कूल जाने के लिए तैयार करने को कहा और वह रसोई में नाश्ता तैयार करने लगी।

सब सामान्य था, लेकिन मेरे भीतर उस प्रश्नकर्ता को सही जवाब नहीं दे पाने की चिंता खाए जा रही थी।
तभी बड़े वाले बच्चे ने कहा-‘आप अंग्रेजी जानते हैं....मेरा होमवर्क करा दीजिए,’

मेरे मुँह से निकला-‘कुछ नहीं,’

और दोनों बच्चे रोने लगे। रसोई में घुसी उसकी मम्मी भी रोने लगी।
मैं भौचक्क। अचानक यह सब नौटंकी क्यों।

बच्चे ने एक कागज मुझे थमा दिया, मेरा बच्चा अंग्रेजी माध्यम में उत्तर लिखने में अनुत्तीर्ण था और उसे स्कूल से चेतावनी मिली थी।’

मैंने मेहरारू से कहा-‘पर तुम क्यों बच्चों-सी रोने लगी?’

उसने कहा-‘कल रात मैंने बच्चों के सो जाने पर यही सवाल पूछी और आपने यही उत्तर दिया था’
‘.....तो’

‘मैंने आपकी सारी हिंदी लिखी जला दी। अब आप अंग्रेजी सीखिए....’

कुछ भी नहीं बचा था। पत्र-पत्रिकाएँ-पुस्तकें-कम्पयूटर सब स्वाहा।

मैं सोच रहा था, क्या अंग्रेजी नहीं जानने का परिणाम इतना खतरनाक हो सकता है।

अचानक हम दोनों हँसने लगे। बच्चे भी। पूरा माहौल खुशनुमा हो गया। घर में प्रसन्नता खिल गई।
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हँसों, हँसो, जल्दी हँसो!

--- (मैं एक लिक्खाड़ आदमी हूँ, मेरी बात में आने से पहले अपनी विवेक-बुद्धि का प्रयोग अवश्य कर लें!-राजीव) एक अध्यापक हूँ। श्रम शब्द पर वि...