Monday, December 17, 2018

अचंभा

.....
- राजीव रंजन प्रसाद
एक रोज अचानक
सारे लोग हाथी बना दिए गए
और दूसरे लोग चढ़ाई करने लगे

उसके बाद वाले दिन
सारे लोग घोड़ा बना दिए गए
और दूसरे लोग सवारी करने लगे

उसके बाद वाले दिन
सारे लोग बैल बना दिए गए
और दूसरे लोग हाँकने लगे

उसके बाद वाले दिन
सारे लोग गदहा बना दिए गए
और दूसरे लोग मनमानी करने लगे

उसके बाद वाले दिन
सारे लोग कुत्ता बना दिए गए
और दूसरे लोग लात मारने लगे

उसके बाद वाले दिन
सारे लोग बकरी बना दिए गए
और दूसरे लोग मिमियाना सुनते रहे

उसके बाद वाले दिन
सारे लोग चूहा बना दिए गए
और दूसरे लोग उछल-कूद देखते रहे

एक दिन फिर अचानक
सारे लोग कीड़ा बना दिए गए
और दूसरे लोग सबको कुचलने लगे

उस रोज मैं आखिर तक रोया
और मर गया!

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हँसों, हँसो, जल्दी हँसो!

--- (मैं एक लिक्खाड़ आदमी हूँ, मेरी बात में आने से पहले अपनी विवेक-बुद्धि का प्रयोग अवश्य कर लें!-राजीव) एक अध्यापक हूँ। श्रम शब्द पर वि...