Wednesday, July 13, 2011

मुंबई में बम-विस्फोट, 20 जानें गईं



मुंबई में इस वक्त हाई-अलर्ट है। लोगों से शांति बनाये रखने की अपील जारी है। मृतकों की संख्या को ले कर गलतबयानी न हो इसका जिम्मा मुंबई नियंत्रण कक्ष पर है। मुंबई कन्ट्रोल रुम से प्राप्त जानकारी के मुताबिक 20 लोगों की मौत हो चुकी है जबकि घायलों की संख्या 100 के ऊपर है। दुख और शोक जताने वालों में भारतीय राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल से ले कर पाकिस्तानी राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी तक गहरी संवेदना व्यक्त कर रहे हैं।

यह महज संयोग नहीं है कि 13 जुलाई को कसाब का 24वाँ जन्मदिन पड़ता है जो 26/11 मुंबई हमले का मुख्य अभियुक्त है। जन्मदिन की यह तारीख़ खून से सना हो; आतंकी हमलावर इस तथ्य को जानते थे। उन्होंने जानबूझकर इस दिन को चुना; ताकि भारतीय आवाम बौखलाए। लोकतांत्रिक सरकार जिसमें त्वरित निर्णय लेने की क्षमता का घोर अभाव है; ने कसाब मामले में हीला-हवाली की हद कर दी है। सरकार से ज्यादा चेतस दहशतगर्द हैं जो ताल ठोंक कर भारतीय सत्ता के सामने चुनौती खड़ी कर रहे हैं।

जिस मामले में काफी पहले फैसला सुनाया जाना चाहिए था; आज उस आतंकी को बंदीगृह में ऐशोआराम की ऐसी जिन्दगी बख़्शी जा रही है जिस पर सलाना खर्च का बजट करोड़ों में है। आज शाम पौने 7 बजे मुंबई के दादर कबूतरख़ाना, ओपेरा हाउस और ज़वेरी बाज़ार इलाके में बम विस्फोट हुए जिनमें जान-माल की भारी क्षति तो हुई ही; इसके अलावे मुंबई को भी दहशत के माहौल में नजरबंद कर दिया। इस वक्त मरहम के सारे शब्द बेमानी हैं। वर्णमालाओं के अर्थ निसार हैं। दरअसल, अचानक आतंकी गर्दो-गुब्बार से सन गई मुंबई की जिन्दगी अगले ही दिन से बिल्कुल पटरी पर आ जाएगी, कहना जल्दबाजी होगी। भूलना नहीं चाहिए कि भूख-प्यास रोज की जरूरत है, तो शांति-सुकून भी पल-पल कीमती है।

जो लोग इतिहास को याद रखते हैं या जो उसके भुक्तभोगी है; उनके लिए यह मंजर बेहद खौफनाक और त्रासदपूर्ण है। इस घड़ी अधिकांश लोग जनमाध्यमों पर निर्भर हैं। मीडिया ही एकमात्र विश्वस्त सूत्र है। सूचना-प्रदायक इन साधनों को काफी एहतियात बरतने की जरूरत है।

क्योंकि यह घटनाक्रम भारत के आंतरिक सम्प्रभुता और रक्षा-प्रणाली से सीधे जुड़ी हुई है। मुंबई ऐसे कई हौलनाक हमलों का साक्षी रहा है। देश की खुफिया एजेंसियाँ भले अपनी वाहवाही में सोलह-शृंगार करें; लेकिन आज उनकी तंत्रगत खामियाँ जगजाहिर हो चुकी है। भारतीय सुरक्षा-व्यवस्था में सेंधमारी करते हुए इस तरह के घटनाओं को अंजाम देना पूरे देश में कायम खुफिया-तंत्र की साख और उसकी विश्वसनीयता पर बट्टा लगाता है।

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--- (मैं एक लिक्खाड़ आदमी हूँ, मेरी बात में आने से पहले अपनी विवेक-बुद्धि का प्रयोग अवश्य कर लें!-राजीव) एक अध्यापक हूँ। श्रम शब्द पर वि...