Thursday, April 21, 2016

हसबैंड‘स डाउटर: ए स्टोरी आॅफ टुडे‘ज लव


राजीव रंजन प्रसाद 
पटकथा लेखक एवं फिल्म समीक्षक
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डोरवेल बजी। सेही रसोई में है। न्यूज़पेपर वाला है। उसने जो अख़बार दिया उसकी हेडलाइन क्रूर मजाक से कम न थी।

‘मि. अजोब की हत्या सरेआम रे मार्केट में’।

कनपटी में जब गोली लगी, तो मि. अजोब का दिमाग सुन्न हो गया। अगले छह घंटे तक वह जिंदगी और मौत के बीच लड़ते रह गए। अंत में दम तोड़ दिया। यह ख़बर का निचोड़ था। लेकिन सेही के लिए यह ख़बर दुःखद भर नहीं था। वह अपने बेडरूम की ओर बदहवाश भागी। सात वर्ष की नेक्या खेलने में मशगूल थी।

कुछ देर बाद सेही जहाँ खड़ी थी वह जगह उसकी थी या नहीं, उसे खुद नहीं पता। मि. अजोब का शव उस बड़े से हाॅल में रखा हुआ था। लोग खड़े थे। कुछ ग़मगीन, उदास। कुछ बातचीत करने में मशगूल।

नेक्या को वहीं छोड़ सेही उलटे पाँव घर से बाहर हो ली। सबकुछ यों घटित हो रहा था जैसे किसी फि़ल्म का स्क्रिप्ट हो। लेकिन यह जि़न्दगी की नंगी सचाई थी। सेही मि. अजोब की विवाहिता नहीं थी लेकिन उनके साथ वह लिव इन रिलेशन में रह रही थी। उसे मि. अजोब ने सुख-साधन की ढेरों सामग्री दी। बहुत सारी सहूलियतें। लेकिन आज अचानक उसकी मृत्यु की ख़बर के बाद सेही का सबकुछ जैसे बरबाद हो गया। नेक्या उसके मि. अजोब की निशानी थी जिसे वह काफी लाड़ करते थे।

सेही कहाँ मर-खप गई होगी, किसी को नहीं पता। लेकिन यह कहानी उस नेक्या की है जो अपने से बिल्कुल अनजान एवं अपरिचित लोगों के बीच थी। और जिसे वह जानती थी या जिसकी वजह से वह इस दुनिया में आई थी वह कथित पिता उसके सामने आदमी की तरह नहीं लाश के रूप में लेटा हुआ था।

नेक्या गले में एक माला पहने हुए थी जिसमें एक कागज का टुकड़ा धागे से लिपटा हुआ था।.....

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हँसों, हँसो, जल्दी हँसो!

--- (मैं एक लिक्खाड़ आदमी हूँ, मेरी बात में आने से पहले अपनी विवेक-बुद्धि का प्रयोग अवश्य कर लें!-राजीव) एक अध्यापक हूँ। श्रम शब्द पर वि...