इत्ती जल्दी यह मूल्यांकन जल्दबाजी साबित होगी। कुल जमा छह महीने बीते हैं मुश्किल से। कोई विशेष पराक्रम या उपक्रम नहीं किया अखिलेश ने की शब्दों की गलबहियाँ की जाएं या कि हर्षोचित उल्लेख। बेरोजगरी भत्ते जैसे अपर्याप्त कार्यक्रम से पढ़े-लिखे जमात का भरण-पोषण हो पाएगा; यह बहसतलब है। राजनीति का कुरुक्षेत्र कहे जाने वाले उत्तर प्रदेश में राजनीति कभी समरस नहीं रही। शासकीय उठापटक और फेरबदल इस प्रदेश की ऐतिहासिक विशिष्टता है। इसी वर्ष हुए उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में बसपा सरकार यदि अपनी कारगुजारियों की वजह से गई, तो सपा शासन अपनी करतब की बजाय जन-विवेक की वजह से सत्ता पर पुनः काबिज होने में सफल रही है। समाजवादी पार्टी के झण्डाबदारों ने जितनी दगाबाजियां आमजन से अपने शासनकाल में की है; उसका रिपोर्ट कार्ड युवा मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को अवश्य पढ़ना चाहिए। सपा शासन में हिंसा, अपराध और खून-खराबे का जबर्दस्त बोलबाला और लोकराज रहा है। स्वभाव से थिर-गम्भीर पार्टी आलाकमान मुलायम सिंह यादव ने भी इस प्रवृत्ति को खूब सराहा है और आवश्यकतानुसार राजनीतिक इस्तेमाल भी किया है। आज अखिलेश यादव उसी पार्टी के मुख्यमंत्री हैं। अतः उन पर अपनी पार्टी की छवि सुधारने का दबाव प्रत्यक्षतः या परोक्षतः पड़ना लाजिमी है।....
(जारी...)
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