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राजीव रंजन प्रसाद
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'पूरा देश पानी-पानी है,
और वातावरण चुप।'
कुकुरमुते सरेआम उगते हैं, तो कईयों का दिल बाग-बाग हो उठता है। भीतर का दोगलापन कुलाँचे मारने लगती है। और दुष्ट आत्मा शिकार की टोह में खुलेआम घूमती हैं। हिंसा-हत्या-लूट-बलात्कार होने पर सरकारी तकरीरें मिमियाती हैं और अपनी औकात में सच के सिपाहसलार इतने निरीह और बेचारे होते हैं कि शाम ढलते ही मुर्गे बांग देने लगते हैं। आकाश में न्याय और निष्पक्षता के झंडे फहराने लगते हैं। देश जय-जय करता हुआ वामपंथी घर में घुस जाता है, जहाँ सभी दल दावत उड़ाते हैं।।
यह कांग्रेस का बनाया हुआ भारत है। इस कांग्रेस का एक लाडला पीआरगिरी द्वारा प्रधानमंत्री बनने को आकुल है, पर उसकी अयोग्यता आड़े आ रही है। इस देश के एक प्रदेश का मुखिया नौजवान है और वह विचारधारा में समाजवादी है। देश का प्रधानमंत्री एक चाय वाला है जिसे बच्चे पाठ्यक्रम में चाव से पढ़ रहे हैं। यह वही प्रधानमंत्री है जो ‘अच्छे दिन’ का उद्घोषक रहा है। इसने एक अच्छा काम यह किया है कि हर जगह अक्षर में 'अच्छे दिन' आ जाने का फतवा पढ़ दिया है और जो इस बात की मुख़ालफ़त में तर्क देने आता है उसकी गला घोंट दी जा रही है।
देश के सभी महान बौद्धिक चुप हैं क्योंकि उनके बोलते ही जेब के सोते सूख जाएँगे। आलीशान होटलों का बिल उन्हें ही भरना पड़ेगा। मलाईदारी और सामाजिक प्रतिष्ठा वाले ठिकानों पर उनकी नियुक्ति नहीं होगी। अतः सरलीकृत मार्ग अपनाते हुए इस वख़्त पूरा देश चुप है। सारा माज़रा सामने होते हुए भी टीवी स्क्रीन से गैरहाज़िर है। या फिर उसकी उपस्थिति इतनी क्षणिक है कि असर आने से पहले ख़त्म हो जाता है। इस घड़ी भारत की राजनीति विज्ञापनी दौर में है जो अंधराष्ट्रवाद को परोस रहा है। गीता और रामायण के चार श्लोक के बाद कुछ याद नहीं है, लेकिन वह भारतीय संस्कृति की रक्षा के लिए टूटे पड़े हैं। यह भाड़े के ट्टटू हैं जो जितना कम जानते हैं उतना ही अधिक देश के सामने बोलते हैं। यह इसलिए बोलते हैं कि उनका किया सामने न आए और उस पर चर्चा न हो। सिर्फ बोले हुए पर हंगामाखेज विडियोगिरी करना राजनीतिक प्रवक्ताओं का पेशा बन चुका है जिनके आगे पूरा देश ख़ामोश है।
अतः चावार्क दर्शन सब रट चुके हैं। जो मिले डकार लो। जितना मिले हथिया लो। जब तक मिले पा लो। जैसे मिले ले लो। और बिल्कुल न मिले तो छिन लो। श्रद्धा बस इतना करो कि जो कुछ कहा जाए वही बोलो। जैसे कहा जाए वैसे बोलो। जितना कहा जाए उतना बोलो। बिल्कुल न कहा जाए तो मुँह ही न खोलो। हर आदमी यथार्थवादी हो गया। काम भर मतलब निकालना सीख गया। पालिश-मालिश का चाटुकारी संस्कार जान गया। भाट-चारण की पैदाइश लोग सर्वगुणसंपन्न हैं। उनका ही दिन और उनकी ही रात है। बाकी सब शिव की बारात हैं। जो मर जाए उसकी परवाह से फायदा नहीं है। ईमानदारी बरतने से चप्पल खाने को मिले तो भ्रष्टाचार बेज़ा क्यों है। सचाई सुनाने के लिए करने के लिए पाखंड एकमात्र सत्य है और मोक्षदायिनी कर्तव्य भी। लोग ऐसा मानने लगे हैं कि औरों के बारे में कविता कहो, कहानी कहो, कथा और उपन्यास कहो; लेकिन कभी सीधे न कहो फलांना चोर है, भ्रष्टाचारी है। जयराम कहो-सियाराम कहो। अल्लाह-पैगम्बर और खुदा गवाह कहो; लेकिन जिओ तो अपने मन की कर जिओ। आरोप, आलोचना आदि से बचो। पक्षधरता का एक ही और सीधा मतलब है कि यदि आप मतलबी नहीं, तो कुछ भी नहीं। अपनी स्वार्थ साधने के लिए हर तिकड़म करना ग़लत नहीं है; लेकिन दूसरों को नंगा अथवा किसी के झूठ का पर्दाफाश देशद्रोह से नीचे कुछ नहीं हो सकता है।
यह उत्तर शती की नई रवायत है जिससे टिराही करने पर राम नाम सत्य है। जिंदा रहने का एक ही शर्त है अपनी आँख-कान-नाक को आराम फ़रमाने दो और औरों के कहानुसार आचरण करो, चश्मदीद बनो।.....
(भारतीय राजनीति की आलोचनात्मक प्रसंग को सम्बोधित यह लम्बा आलेख जल्द ही प्रकाशित, प्रतीक्षा करें!-राजीव रंजन प्रसाद)
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