Friday, October 14, 2016

तलाश

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राजीव रंजन प्रसाद
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बार-बार
हुआ अहसास
जो कुछ है
वह निरा माया है
हर उपलब्धि
अगली महत्त्वाकांक्षा का अनुपूरक है
हम भटकते हैं अहर्निश
ऋजुरेखा की तलाश में
लेकिन वह सीधी रेखा नहीं
माया की ही प्रतिछाया है
फिर यह लाग कैसी
कैसा बवंडर और चक्रवात यह
कुछ हो जाने का
बहुत कुछ पा लेने का
अमर हो जाने का

ओह!
ऊँ शांति....ऊँ शांति....ऊँ शांति!!!

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हँसों, हँसो, जल्दी हँसो!

--- (मैं एक लिक्खाड़ आदमी हूँ, मेरी बात में आने से पहले अपनी विवेक-बुद्धि का प्रयोग अवश्य कर लें!-राजीव) एक अध्यापक हूँ। श्रम शब्द पर वि...