Tuesday, December 12, 2017

एक लाइक मँजते राहुल के लिए

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राहुल गाँधी ने अपना थिंक टैंक और पीआर समूह बदला तो उनकी भाषा और कहन का तेवर तक बदल गया। इसके लिए राहुल गाँधी खातिर एक लाइक तो बनता है।

आप खुद भी देखें कि राहुल गुजरात में असफल रहे, तो भी 2019 में उनका प्रधानमंत्री के रूप में राष्ट्रीय प्रतिनिधित्व का पर्याय बन जाना संभव है। वह मानकर चलें कि 2019 के आम लोकसभा चुनाव से पहले उन्हें जबर्दस्त कामयाबी नहीं मिलेगी। वैसे भी उनके पास अभी इस घड़ी खोने के लिए कुछ भी नहीं है।

राहुल गाँधी की निंदा-आलोचना हो चुकी है। अब उनके बनने के दिन हैं। वह अपने ऊपर इसी तरह संयम रखे और नियंत्रित बोलें। वह आजकल जिस तरीके से रूक-थम और नाप-तौल कर बोल रहे हैं, उससे उनके बोल की अर्थवत्ता और कहन का प्रभाव बढ़ा है। अतएव, वह फैसले ही न लें बल्कि देश के समक्ष वह निर्णायक फैसले लेते हुए दिखे भी। मणिशंकर अय्यर प्रकरण में उनकी पहलकदमी काबिलेतारीफ़ है।

इधर बीच मोदी जी बुलेट-ट्रेन के बरास्ते सी-प्लेन में यात्रा कर रहे हैं। और यह वह उपलब्धि है जिसके लिए जनता को आजीवन नतजानु-शतजानु होना चाहिए। असल बात तो यह है कि, 2019 तक मोदी जी के ख़िलाफ कोई सीधी कार्रवाई, आरोप-प्रत्यारोप आदि नहीं होने चाहिए। पूरे देश को 2019 तक भारतीय जनता पार्टी को एकमुश्त सुनने, देखने और समझनेकी जरूरत है।

उनके तमाम एजेंडा-सेटिंग, प्रचार-राजनीति, आदि के बावजूद 2019 के लोकसभा चुनाव में यदि भारत की युवा पीढ़ी ने उन्हें सत्ता से बेदख़ल कर दिया, तो समझिए भारत की राजनीति ने नई देह-काया पा ली। राहुल गाँधी को तब तक इंतजार करना चाहिए। वह विभिन्न राज्यों की प्रादेशिक इकाइयों को मजबूत करने में जुटे रहे। ईमानदार पहलकदमी के साथ कर्मठ और समर्पित कार्यकर्ताओं को पदस्थापित करें।

आपका भला होगा, फ़िलहाल 18 दिसम्बर की रात आप आतिश जलाने की तैयारी कीजिए। आपने कांग्रेस अध्यक्ष पद जो हथिया ली है!

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हँसों, हँसो, जल्दी हँसो!

--- (मैं एक लिक्खाड़ आदमी हूँ, मेरी बात में आने से पहले अपनी विवेक-बुद्धि का प्रयोग अवश्य कर लें!-राजीव) एक अध्यापक हूँ। श्रम शब्द पर वि...