Saturday, December 11, 2010
कल की तारीख़ में आज लिखा गया ख़त
प्रिय देव रंजन,
कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी में तुम्हारे दाखिले से प्रसन्न हूँ। यह तुम्हारे श्रम की सिद्धि है। संतुष्टिपूर्वक आगे और अच्छा करो, शुभकामना। तुम्हारी माँ बता रही थी वहाँ तुम्हारे साथ में एक लड़की रह रही है। हिन्दी में धाराप्रवाह बोलती है। वह तो उस बाला पर मोहित है। चलो, सावधानीपूर्वक मैत्री का निर्वाह करना। इन दिनों दीप रंजन कविता लिखने में मगन है। तुम जानते ही हो कि उसका जी जरूरतमंद लोगों की सेवा करने में ज्यादा लगता है। वह बोलता भले कम है, लेकिन उसकी चुप्पी में ढेरों कोलाहल, हलचल और किस्म-किस्म की आवाजें शामिल है। आजकल कनिषा से उसकी खूब बन रही है। दोनों को संग-साथ खुश देख खुशी होती है। तुम्हारी माँ को भी कोई शिकायत नहीं। हमदोनों को पता है कि तुमदोनों अपनी जिंदगी हमारे सलाह-सुझाव के बगैर भी बेहतर तरीके से जीने का गुर सीख चुके हो। दरअसल, खुद से तय मानदण्डों के माध्यम से मिली कामयाबी आदमी को ज्यादा सफल साबित करती है।
तमाम घरेलू संपन्नता के बावजूद तुम्हारी माँ को तुम्हारे ई-मेल का इंतजार रहेगा।
तुम्हारा पिता
राजीव रंजन प्रसाद
01/11/2029
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
हँसों, हँसो, जल्दी हँसो!
--- (मैं एक लिक्खाड़ आदमी हूँ, मेरी बात में आने से पहले अपनी विवेक-बुद्धि का प्रयोग अवश्य कर लें!-राजीव) एक अध्यापक हूँ। श्रम शब्द पर वि...
-
यह आलेख अपने उन विद्यार्थियों के लिए प्रस्तुत है जिन्हें हम किसी विषय, काल अथवा सन्दर्भ विशेष के बारे में पढ़ना, लिखना एवं गंभीरतापूर्वक स...
-
तोड़ती पत्थर ------------- वह तोड़ती पत्थर; देखा उसे मैंने इलाहाबाद के पथ पर- वह तोड़ती पत्थर कोई न छायादार पेड़ वह जिसके तल...
-
-------------------------- (घर से आज ही लौटा, अंजुरी भर कविताओं के साथ जो मेरी मम्मी देव-दीप को रोज सुनाती है। ये दोनों भी मगन होकर सुनते ...
No comments:
Post a Comment