Saturday, December 18, 2010
राहुल के कहे पर कोहराम
राहुल गांधी के बयान ने एक बार फिर भाजपा जैसी धर्मान्वेषी विपक्षी पार्टी के जुबान पर मिर्ची रगड़ दिया है। राहुल गांधी का अमेरिकी राजदूत टिमोथी रोमर से यह कहना कि ‘हिन्दू चरमपंथी समूहों की बढ़त भारत के लिए लश्कर-ए-तैयबा जैसे आतंकी समूहों की गतिविधियों से बड़ा खतरा पैदा कर सकती है’ बिल्कुल मुनासिब है। लेकिन कांग्रेस महासचिव का यह बयान कांग्रेस के लिए स्वीकारना और खारिज करना दोनों मुश्किल है। वैसे भी बिहार चुनाव में लुटी-पिटी कांग्रेस आजकल राजनीतिक रार लेने से बचना ही फायदेमंद समझ रही है। 2-जी स्पेक्ट्रम मामले में विपक्ष ने उसका जो गत बना डाला है वह देखने लायक है। दरअसल, कांग्रेस इस वक्त ‘बौनाग्रंथी’ से शिकार है। अंदरूनी कलह और प्रांतीय राजनीति में ढीली पड़ती केन्द्रीय बागडोर ने कांग्रेसी महारथियों के मानसिक दशा को बिगाड़ दिया है। राहुल खुद अपनी बात पर टीके रहने वाले नहीं हैं। उनके व्यक्तित्व में वो ‘स्टेण्डेबल पार्टिकल्स’ ही नहीं है कि वे सच को सच के रूप में आजमाते रहने का दृढ़संकल्पित साहस दिखा सके। ऐसे में मोर्चे पर तैनात स्पिन डॉक्टर राजनीतिक गुगली फेंकते दिख तो रहे हैं लेकिन ‘नो बॉल’ के लहजे में। खैर, अब जनता जागरूक है। उसे भरमाना आसान नहीं रहा। जद(यू)-भाजपा गठबंधन सरकार को बिहार में जीत मिली है तो उसके सशर्त मायने भी हैं। नीतीश सरकार का पैर फिसला नहीं की डूबने की संभावना सौ-फीसदी है। यानी कि भारतीय जनता चाहे वह बिहार की हो या गुजरात की हिन्दुत्ववाद का साम्प्रदायिक चेहरे को खारिज कर चुकी है। ऐसे में नरेन्द्र मोदी की राजनीति को ‘हिन्दुत्ववादी’ लिहाफ या आवरण मंे लिपटा देखना बेवकुफी है। गुजरात में नरेन्द्र मोदी की जयजयकार की मुख्य वजह बातें कम काम ज्यादा है। मोदी प्रजातांत्रिक पूँजीवाद के घोर-समर्थक हैं। आर्थिक विकास का जो मॉडल वह गुजरात में लागू कर रहे हैं। उससे सिर्फ औद्योगिक घरानों का ही हित नहीं सध रहा है बल्कि जनता को भी अनेकों फायदे मिल रहे हैं। विकास, शांति, सुरक्षा और न्याय का मॉडल चाहे बिहार में हो या उड़ीसा, झारखण्ड या कि गुजरात-महाराष्ट्र में। जनता का सौ-फीसदी समर्थन साथ होगा, निश्चय जानिए। जनता तब कांग्रेस, भाजपा, लेफ्ट या राइट में भेद नहीं करती है।
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