Saturday, February 5, 2011

1...3......6.........9 में तब्दील 5 मार्च



अगले माह की 5वीं तारीख़ करीब है।
तुम कह रही हो, किसके?
मैं निरुत्तर।
जवाब की टोह में गहरे उतरना होगा।
तुम कह रही हो, कहाँ?
मैं निरुत्तर।
सालों के बढ़ते अंतराल ने आपसी समझ और साझेदारी को पुख्ता किया है।
तुम कह रही हो, कैसे?
आजकल इंतजार को दिन से माह, और माह से वर्ष में बदलना सीख गया हँू।
तुम कह रही हो, कब?
मुझे समझ नहीं आता कि तुम्हारा मेरे हर पूर्णविराम के बाद सवाल पूछना जरूरी है।
फिर तुम पूछ रही हो, क्यों?

मेरे अंदर का चालाक मर्द सोच रहा है-‘‘कह दूं क्या, हैप्पी इनवर्सिरी डे’।

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हँसों, हँसो, जल्दी हँसो!

--- (मैं एक लिक्खाड़ आदमी हूँ, मेरी बात में आने से पहले अपनी विवेक-बुद्धि का प्रयोग अवश्य कर लें!-राजीव) एक अध्यापक हूँ। श्रम शब्द पर वि...