
उम्मीदें हैं इसलिए कि स्कूल में आपके बारे में पढ़ा था 9वीं कक्षा में। उसी समय जाना था कि भारतीय प्रधानमंत्री देश का वास्तविक मुखिया होता है। मंत्रीमण्डल को वही रचता-बुनता है। योग्य और अयोग्य की कसौटी तय करता है। अधिकारों में कटौती और उससे छिन लेने वाला नियोक्ता-प्रयोक्त भी वही होता है। अम्बेडकर जी वाली मोटी किताब जिसे संविधान कहते हैं; और अधिकांश शिक्षक जिसे ‘होलीबुक ऑफ सोसायटी एण्ड इंडियन नेशन’ कहते थे, उसमें भी आपके नाम की स्तुति-संस्तुति है। उसमें जो अंकीय मात्रा लगी थी, वह थी-अनुच्छेद 74(1)। उसे पढ़कर मैंने 9वीं में प्रश्नपत्र हल किया था जो आज भी कंठस्थ है। सचमुच पीएम, आपको पढ़-पढ़कर बड़ा हुआ हँू....इसी कारण आपसे बेपनाह उम्मीदें हैं। औरों को भी होंगी...और न भी होंगी...तो मैं अपनी उम्मीदें क्यों छोड़ूं....है न! पीएम।
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