Friday, June 14, 2013

भारतीय जनता के नाम....जरूरी सवाल


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1.
मनमोहन सिंह बनाम अमत्र्य सेन
2.
नरेन्द्र मोदी बनाम अरविन्द केजरीवाल
3.
राहुल गाँधी बनाम अरुंधती राय
4.
वरुण गाँधी बनाम आनंद कुमार
5.
मुरली मनोहर जोशी बनाम मेधा पाटेकर
6.
मायावती बनाम पी. साईनाथ
7.
मुलायम सिंह यादव बनाम प्रशांत कुमार
8.
शिला दीक्षित बनाम हिमांशु कुमार
9.
कपिल सिब्बल बनाम प्रो. यशपाल
10.
लालू यादव बनाम परांजपे गुहा ठाकुरता
11.
नवीन जिंदल बनाम सचिन तेन्दुलकर
12.
सचिन पायलट बनाम रविश कुमार
13.
रामविलास पासवान बनाम रामजी तिवारी
14.
दीग्विजय सिंह बनाम दिलीप सी. मंडल
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545.
पूर्व-काबिज़ बनाम नई अंगड़ाई
546.
पूर्व-काबिज़ बनाम नई अंगड़ाई
547.
पूर्व-काबिज़ बनाम नई अंगड़ाई
548.
पूर्व-काबिज़ बनाम नई अंगड़ाई

साहब जी....ये तो फौरी तौर पर लिए गए नाम हैं जिनमें से जनता हमेशा दूसरे को ही चुनेगी.....क्योंकि यहाँ नई अंगड़ाई में शामिल ये वे लोग हैं जो देश के मौजूदा राजनीतिक हालात, संकट और नेतृत्व पर सीधे सवाल खड़ा करते हैं......अपनी स्पष्ट असहमति दर्ज करते हैं.....सार्थक/सुविचारित हस्तक्षेप करते हैं।

आप इस तरह के विकल्पों पर गंभीरतापूर्वक विचार कीजिए.......जहाँ तक धाकड़ प्रचार और अभियान-खर्चे की बात है, तो चलिए आज ही यह संकल्प लें कि एक भारतीय नागरिक के रूप में ‘लोकसभा चुनाव-2014’ तक अर्थव्यवस्था के हिसाब से हर सक्षम/सामथ्र्यवान नागरिक अपनी भागीदारी/हिस्सेदारी तय करेगा और अपनी आधी या आधी से अधिक वार्षिक आमदनी इस ‘स्वाधीन नवजागरण अभियान’ को देने के लिए अपनी वचनबद्धता/प्रतिबद्धता दुहराएगा।

भारतीय जन-समाज विकल्पहीन नहीं है। वह न तो लती है और न ही मतिभ्रम का शिकार है। कायर/कोढ़ी हैं वे लोग जो देश की राजनीतिक हालात और परिस्थिति पर मगरमच्छी रोना...तो रोते हैं....लेकिन विकल्प की राह चुनने या स्वयं राह बनने से हमेशा डरते हैं।

क्योंकि उन्हें पता है कि ग़लत होने की स्थिति में इतिहास उनके नाम को कभी माफ नहीं करेगा।

और मैं(पतरसूखा रजीबा) तो हरग़िज ही नहीं जो युवा राजनीति, ज़मीनी राजनीति, नई राजनीति के मनोविज्ञान, भाषाविज्ञान, व्यक्तित्व, नेतृत्व, व्यवहार, समाजीकरण, प्रत्यक्षीकरण इत्यादि पर शोध-प्रबन्ध लिखने बैठा है और उसे उपर्युक्त वर्णित दूसरे श्रेणी के लोगों की अब तक की पहलकदमी और आपकी काबीलियत पर अगाध विश्वास है।

....तो हो जाए....जन-गण-मन की शुरूआत..................!

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हँसों, हँसो, जल्दी हँसो!

--- (मैं एक लिक्खाड़ आदमी हूँ, मेरी बात में आने से पहले अपनी विवेक-बुद्धि का प्रयोग अवश्य कर लें!-राजीव) एक अध्यापक हूँ। श्रम शब्द पर वि...