Tuesday, December 7, 2010
गश्ती पर लौटे काशी के 'भोकाली जांबाज'
धमाका हुआ तो ये सो नहीं रहे थे. डयूटी पर तैनात थे. बीड़ी-हुक्का भी नहीं पी रहे थे. ठण्ड में चाय की तलब भी इन्हें नहीं सता रही थी. फिर ये क्या कर रहे थे? काशीवासी यह सवाल इनसे पूछ रहे हैं. जवाब तो ये देंगे ही देंगे, पर आज ये क्या करिश्मा करते दिख रहे हैं? उस पर एक चलती नज़र...,
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हँसों, हँसो, जल्दी हँसो!
--- (मैं एक लिक्खाड़ आदमी हूँ, मेरी बात में आने से पहले अपनी विवेक-बुद्धि का प्रयोग अवश्य कर लें!-राजीव) एक अध्यापक हूँ। श्रम शब्द पर वि...
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यह आलेख अपने उन विद्यार्थियों के लिए प्रस्तुत है जिन्हें हम किसी विषय, काल अथवा सन्दर्भ विशेष के बारे में पढ़ना, लिखना एवं गंभीरतापूर्वक स...
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तोड़ती पत्थर ------------- वह तोड़ती पत्थर; देखा उसे मैंने इलाहाबाद के पथ पर- वह तोड़ती पत्थर कोई न छायादार पेड़ वह जिसके तल...
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-------------------------- (घर से आज ही लौटा, अंजुरी भर कविताओं के साथ जो मेरी मम्मी देव-दीप को रोज सुनाती है। ये दोनों भी मगन होकर सुनते ...
1 comment:
अरे भाई इन धमाकों ने तो हमारा जीना हराम कर दिया है ...बार - बार धमाके ..और बार -बार जानी नुक्सान ...क्या कहें ...आप आगे बढ़ें ...शुभकामनायें
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