Monday, February 14, 2011

सिर्फ मैं-तुम



आज
चाय बनी होगी कल की तरह ही
एकदम ‘फर्स्ट क्लास’।
परसों की भाँति शक्कर भी डाला होगा
तुमने अपने अनुभव और अभ्यास के अंदाज से
ठीक-ठीक।
चाय न पीने की तुम्हारी लत
बिल्कुल उलटा
हमारे घर की रोज की आदत में शुमार है।
मैं रहूँ या न रहँू
चाय रोज बनती है पिछले कल की तरह
आगे कल की बाट जोहती हुई।

प्रिय...!
चाय की घूंट साथ-साथ न पी पाना
मेरी विवशता है और तुम्हारी मर्यादा।
घर में चैन है कि
चाय रोज बन रही है
और बनाने वाली सही-सलामत है।
उन्हें यह भान है कि
चाय बनने के लिए पानी को खौलना होता है
स्वाद के लिए चायपती को देनी पड़ती है आहुति।
चीनी को घूलना होता है दूध के रंग में
समय को अंदाजना होता है कि
‘चाय पक जाने’ का सायरन बजे उचित समय पर।

इस बीच तुम्हारा और मेरा
जलना आग की तरह
चाय की दुरुस्त सेहत के लिए अनिवार्य है।
तुम धीमी जलो या तेज
मैं मद्धिम जलूँ या ज्वाला बन
मेरे तुम्हारे बीच बना रहेगा फाँक, याद रखो।

अतः बामुलाहिजा-होशियार

तमाम दुश्वारियों के बावजूद
तुम्हें घर के कहे-मुताबिक ही
चाय बनाना पड़ेगा एकदम ‘टैम’(समय) पर।

और मैं,
तुमसे करता रहँूगा बात
दूर-तरंगों की आवाज़ बन।
लेता रहूँगा हाल-चाल
कहता रहूँगा हर रोज एक ही बात
‘छोड़ो’, ‘हटाओ’, ‘जाने दो’।

1 comment:

नयी उम्मीदें said...

हमारे घर की रोज की आदत में शुमार है।
मैं रहूँ या न रहँू
चाय रोज बनती है पिछले कल की तरह
आगे कल की बाट जोहती हुई।


anubhav se nikli hui kavita...
badhayiyan....

हँसों, हँसो, जल्दी हँसो!

--- (मैं एक लिक्खाड़ आदमी हूँ, मेरी बात में आने से पहले अपनी विवेक-बुद्धि का प्रयोग अवश्य कर लें!-राजीव) एक अध्यापक हूँ। श्रम शब्द पर वि...