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सच पूछिए
जिस जंगल से
मेरा कोई दरकार नहीं है
उस जंगल के बारे में
मैंने पढ़ा है
यह जाना है
कि वहाँ कोई भव्य शादी नहीं करता
कि वहाँ कोई दिव्य दावत नहीं देता
कि वहाँ कोई एम्स या आईआईटी संस्थान नहीं खुलता
कि वहाँ कोई बिड़ला अपनी मन्दिर नहीं बनाता
कि वहाँ कोई फिल्म समारोह आयोजित नहीं होता
कि वहाँ कोई सूचना-राजमार्ग नहीं पहुँचता
कि वहाँ वैसा कुछ भी नहीं होता
...जो आज के कथित उत्तर आधुनिक समाज में होता है
जबकि वहाँ लोग रहते हैं
जबकि वहाँ जीवन का संकट है
जबकि वहाँ परिस्थितियाँ विकट है
तब भी जंगल में बसे लोग जंगल को प्यार करते है जबर्दस्त
सच पूछिए
जिस जंगल से
मेरा कोई दरकार नहीं है
उस जंगल के बारे में
मैंने पढ़ा है
यह जाना है
कि उनका सीधा सम्बन्ध हमारे मौलिक अधिकार से नहीं है
कि उनका सीधा सम्बन्ध हमारे देश के संविधान और सरकार से नहीं है
कि उनका सीधा सम्बन्ध हमारे विकसित होते शहर से नहीं है
कि उनका सीधा सम्बन्ध हमारे कला, साहित्य, संस्कृति व शिक्षा से नहीं है
कि उनका सीधा सम्बन्ध हमारे अर्थ-व्यापार, शेयर, बीमा व बैंकिंग से नहीं है
जबकि वहाँ लोग रहते हैं
जबकि वहाँ जीवन का संकट है
जबकि वहाँ परिस्थितियाँ विकट है
तब भी जंगल में बसे लोग जंगल को प्यार करते है जबर्दस्त
सच पूछिए
जिस जंगल से
मेरा कोई दरकार नहीं है
उस जंगल के बारे में
मैंने पढ़ा है
यह जाना है
कि वहाँ संगीनों का बोलबाला है
कि वहाँ बाहरी गुर्गे तैनात हैं
कि वहाँ ज़मीनों की लूटमार है
कि वहाँ वह सब है
जिसमें वहाँ के लोगों की मिलीभगत नहीं है
जबकि वहाँ लोग रहते हैं
जबकि वहाँ जीवन का संकट है
जबकि वहाँ परिस्थितियाँ विकट है
तब भी जंगल में बसे लोग जंगल को प्यार करते है जबर्दस्त
सच पूछिए
जिस जंगल से
मेरा कोई दरकार नहीं है
उस जंगल के बारे में
मैंने पढ़ा है
यह जाना है
कि बाहरी लोगों का सम्बन्ध और सरोकार वहाँ की मूल आत्मा से नहीं है
कि बाहरी लोगों का सम्बन्ध वहाँ की भाषा और संवेदना से नहीं है
कि बाहरी लोगों का सम्बन्ध वहाँ की स्थानीय भूगोल और मानचित्र से नहीं है
जबकि वहाँ लोग रहते हैं
जबकि वहाँ जीवन का संकट है
जबकि वहाँ परिस्थितियाँ विकट है
तब भी जंगल में बसे लोग जंगल को प्यार करते है जबर्दस्त
क्या आप भी पढ़ते हैं अख़बारों में जंगल के बारे में
या गढ़ते हैं कविता अपने चेहरे के आइने पर....फेसबुक पर मेरी तरह।
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