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नयनतारा उन भारतीय महिलाओं में से है जो अपने बच्चों के सुरक्षित भविष्य को लेकर फिक्रमंद रहती है। अस्थायी नौकरी के बीच नयनतारा तलाकशुदा ज़िन्दगी जी रही है। रोहन उसका बेटा है और रोहिणी बेटी। नयनतारा काॅलोनी के मानिंद लोगों से बहुत कम कमाती है, लेकिन रोजमर्रा के खर्च में कटौती बेहिसाब करती है।
उसका सपना है कि रोहन और रोहिणी सोसाइटी के पब्लिक स्कूल में पढ़े। लेकिन वहाँ दाखिला नहीं मिलती है। स्कूल से निराश हो कर लौट रही नयनतारा की मुलाकात वार्डेन कालिन्दी से संयोगवश तब होती है जब उसका पति उसे स्कूल छोड़ने या तलाक देने के लिए कह रहा होता है।
खुद तलाकशुदा नयनतारा परेशानहाल कालिन्दी से अपना जीवनगाथा शेयर करती है। वह बताती है कि वह पहले से कितना बेहतर और मानसिक रूप से खुद को संतुष्ट एवं सुरक्षित महसूस कर रही है। कालिन्दी जिसकी अर्सी नाम की 6 साल की बेटी है; वह नयनतारा के हौसले और साहस को देखकर उसी समय अपने पति को स्पष्ट शब्दों में तलाक के लिए हाँ कह देती है।
नयनतारा जो निम्न मध्यवर्गीय परिवार से है जब उच्च मध्यवर्गीय परिवार की कालिन्दी के सम्पर्क में आती है तो उसे अहसास हो जाता है कि धन होने से घर में सामान बढ़ जाता है; संस्कार या मानसिकता बदलती है। यह जरूरी नहीं है। हर पुरुष तो नहीं, लेकिन, भारत के अधिसंख्य पुरुष श्रेष्ठताबोध की ग्रन्थि से ग्रस्त रहता ही रहता है।
नयनतारा के बच्चों का स्कूल में प्रवेश कालिन्दी के सहयोग से हो जाता है। नयनतारा भावातिरेक और खुशी में एक गीत गाती है। कालिन्दी गीत सुनती है, तो जिज्ञासाभाव से उसे और कुरेदती है। नयनतारा बताती है कि उसे ढेरों लोकगीत याद हैं जो उसने बचपन में सुन रखा है।
कालिन्दी नयनतारा के साथ मिलकर एक प्लान बनाती है। दोनों मिलकर सारे गीतों का कलेक्शन करती हैं। नयनतारा अपने हमउम्र औरतों से भी कालिन्दी को मिलाती है। इस तरह एक किताब का फार्मेट तैयार होता है। पुस्तक का नाम लाख माथापच्ची के बावजूद वे नहीं तय कर पाती हैं। हरीश रावत जो एक बड़ा प्रकाशक है; कालिन्दी का दोस्त है। वह इस पुस्तक के प्रकाशन का सारा खर्च उठाने को तैयार हो जाता है।
नयनतारा कालिन्दी को आगाह करती है। हरीश की आँख ठीक है लेकिन उसकी पुतली उसे प्रायः ग़लत ढंग से घूरती है। कालिन्दी हरीश के बड़प्पन और महानता का किस्से सुनाती है कि दोनों काॅलेज के फ्रेण्ड हैं। एक-दूसरे के बीच ग़लत कुछ हो ही नहीं सकता है।
कालिन्दी को जल्द ही अहसास हो जाता है। नयनतारा सही कह रही थी। वह नयनतारा से माफी मांगती है। अब प्रकाशन के लिए दोनों चन्दा जुटाती है। दूसरे प्रकाशकों से मिलती है, लेकिन हरीश के स्टेटस से प्रभावित लोग पुस्तक छापने के लिए तैयार नहीं होते हैं। प्रकाशन संस्थान में व्याप्त भ्रष्टाचार और बाज़ार का मकड़जाल उजागर होता है।
हरीश कालिन्दी को फिर आॅफर करता है। मुहमांगी रकम देने की पेशकश करता है। बात नहीं बनती, तो चतुराईपूर्वक नयनतारा को बदनाम करता है। नयनतारा की बेटी रोहिणी को स्कूल में एक लड़के से कथित प्रेम के आरोप में निष्कासित कर दिया जाता है। नयनतारा का लड़का रोहन ग़लत संगत में पड़ पैसे का दुरुपयोग कर रहा होता है। सिगरेट पीने की लत उसे लग चुकी है।
कालिन्दी और नयनतारा इस कठिन समय में भी हिम्मत नहीं छोड़ती हैं। अपने पुस्तक के प्रकाशन के लिए पैसे एकजुट कर रही होती हैं कि एक दिन कालिन्दी की लड़की अर्सी सिढ़ियों से लुढ़ककर गिर जाती है। गंभीर चोट की वजह से अस्पताल के आइसीयू में रखा गया है।
वहीं नयनतारा कालिन्दी को हौसला आफजाई के लिए एक गीत गाती है। पूरा अस्पताल इसमें शामिल होता है। डाॅ0 अभय जो उस अस्पताल के मशहूर न्यूरो-फिजिशियन हैं, नयनतारा के गीत के बोल सुन भावुक हो जाते हैं। वे कालिन्दी और नयनतारा की हरसंभव मदद करते हैं। पुस्तक का नाम एक मीटिंग में तीनों मिलकर ‘अभ्युत्तथान’ रखते हैं।
डाॅ0 अभय का दोस्त अकुल एक बहुत बड़े प्रकाशन कंपनी में है। वह कालिन्दी और नयनतारा को उसके पास भेजता है। दोनों साफगोई के साथ इस पुस्तक को लेकर हुई सारी परेशानी अकुल से शेयर करती है। अकुल अपने बाॅस से मिलवाने के लिए नयनतारा और कालिन्दी को ले जाता है। वहाँ डाॅ0 हरीश पहले से पहुँचा है और उसकी प्रकाशन कंपनी के मालिक से तिखी झड़प हो रही है। वह बाहर गुस्से में निकलता है। सामने नयनतारा और कालिन्दी को देख एकबारगी चौंक जाता है।
अतुल अपने बाॅस से नयनतारा और कालिन्दी को मिलाता है। हरीश के बारे में दोनों ने अतुल को अभी-अभी ही बताया होता है, सो वह बड़ी होशियारी से इस पुस्तक के प्रकाशन के लिए राजी कर लेता है।
पुस्तक छप जाती है। लेकिन उसके बिकने का संकट सामने आता है। कालिन्दी और नयनतारा को समझ में आता है कि पुस्तकों की बिकावली के लिए भी गणित और समीकरण दुरुस्त होने चाहिए।
इस समस्या का हल भी निकल जाता है। रोहन, रोहिणी और अर्सी इसका बीड़ा उठाते हैं। तीनों गीत गाते हुए नुक्कड़-प्रदर्शन करते हैं। कालिन्दी और नयनतारा उस पुस्तक की प्रतियाँ बेच रही होती हैं।
देखते-देखते पुस्तक ‘अभ्युŸथान’ की सभी प्रतियाँ बिक जाती हैं। कालिन्दी और नयनतारा को एक व्यावहारिक ज्ञान होता है। भारत में पुस्तक के पाठकों की कमी नहीं है। बल्कि पुस्तक माफियाओं ने लेखकों/साहित्यकारों की आत्मा को खरीद लिया है। लेखक, साहित्यकार या बुद्धिजीवी सार्वजनिक जीवन में नहीं बोलते हैं। उन्हें प्रायोजित कार्यक्रमों, विश्वविद्यालय गोष्ठियों तथा निजी साहित्यिक-सांस्कृतिक संस्थानों-संगठनों ने हथिया लिया है या वे इन पूँजीबाड़ों के गिरफ्त में अपनी वास्तविक चेतना नष्ट कर चुके हैं।
कालिन्दी और नयनतारा ने अभ्युत्तथान नाम से पुस्तकशाला खोल दिया है। वे पुस्तकों को ‘भाव एवं विचारों का जनसंग्राम’ मानते हुए पूरे देश के पाठकों को जागरूक करने का बीड़ा उठाती हैं।
पुस्तक बाज़ार से निकलकर लोक से जुड़ती है, तो लोकमंगल की भावना का विस्तार होता है। सभ्यता, संस्कृति, समाज, राजनीति...सभी का अभ्युत्तथान होता है।
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