Sunday, June 19, 2016

वाह! रजीबा वाह!


Virtual Popularity :  Sign & Language Propaganda in Indian Politics
आँकड़ों से बात नहीं बनती, सूरत भी मिलनी चाहिए
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 सुनो नरेन्द्र! तेरा मन बदल रहा है...तेरा मन बढ़ रहा है

''नरेन्द्र तुम्हारे पास माँ है और जिसके पास अपनी कोख से पैदा करने वाली माँ ज़िंदा हो, वह अपनी भारत माता का हमेशा जय-जय करेगा। अगर नहीं कर सका, तो यह पूरे देश का दुर्भाग्य होगा।''


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मैं सत्ता का शरणार्थी नहीं हूँ, इसलिए मैं तुम्हारी भाषा बोलने के लिए बाध्य नहीं हूँ। पिछली सत्तासीन कांग्रेस को जनता ने बार-बार मौका देकर अपनी जीवनकाया बदलने की उम्मीद जताई। निराशा हाथ लगी। राजनीतिक उच्चाकांक्षा के धनी और जातीय भेदभाव के संचारक पार्टी की शक्ति और तरक्की गई तेल लेने। बचे तुम नरेन्द्र, तुम तो चाय वाले के बेटे थे न! फिर तुमने देश को फैशनपरस्ती के अंधमोड़ पर क्यों खड़ा कर दिया है। क्यों गंदगी को ढाँप-तोप कर तुम उस पर मखमली दावत खिलाने पर तुले हो। भीतरी सड़ांध से तुम्हें आज न कल सामना करना ही होगा। तुम्हारी यह प्रचार-गाड़ी जो तेरा तकनीकी-नेटवर्क चलाते हैं, तुम्हारा नाम सदैव आॅनलाइन रखने को तत्पर दिखते हैं। उनकी सैलरी बंद कर दो, तो अगल दिन से तुम्हारा नाम चैपट कर देंगे। कहाँ फँसे हो नरेन्द्र! अपने का बाहुबलि समझने की भूल नहीं करो और न ही महाबलि। 

इतना झूठ बोलने की बजाए सच स्वीकारो। स्वीकारों की भारत में शिक्षा एक धंधा है और तुम्हारे आने के बाद भी जारी है। स्वीकारो कि प्रत्येक पार्टी पहले जात ढूँढती है, फिर अपनों के फायदे के हिसाब से काम करती है। स्वीकारो कि महंगी चीजों पर टैक्स से आम-आदमी का जीवन नहीं सुधर रहा, बल्कि उन्हें और बदतर जीवन जीने पर विवश होना पड़ रहा है। नरेन्द्र आदमी की नियत को मत भाँपों बल्कि अपने विचार को जाहिर करो। तुम्हारे बोल में व्यंग्य का टोन अद्भुत है, उसे उचित एवं उपयुक्त ढंग से इस्तेमाल करो। देश की तस्वीर साझा करो, लेकिन वही जिसे देखकर आम-आदमी अपने होने का अहसास कर सके। 

नरेन्द्र, प्रचार और विचार में अंतर है। तुम प्रचारवान की तरह अपने को हर जगह छाए दिखना चाहते हो। यह भूल रहे हो कि आसमान में मेघ छाने की कीमत देनी पड़ती है, उसे बारिश बन बरसना पड़ता है। तुम तो सिर्फ वाहवाही में रहना चाहते हो। चीजें बदल रही है, आगे बढ़ रही है। यह बात जनता को कहने दो। तुम क्यों अपने मुँह-मियाँ-मिट्ठू बन रहे हो। नरेन्द्र तुम्हारे प्रवक्ता स्वांगधारी हैं। वे भारतीय इतिहास, सभ्यता, संस्कृति के बार में बहुत कम जानते हैं। कला, साहित्य, पुरातत्त्व आदि के बारे में और भी कम। ऐसे प्रवक्ता तुम्हारी छवि का बेड़ागरक करने के सिवा कुछ नहीं कर सकते। 

नरेन्द्र भेड़ियाधसान नेताओं की खेप को कांग्रेस ने पैदा किया; और पार्टियों ने पाला-पोसा। बीजेपी ने भी यही किया। लेकिन नरेन्द्र तुम जैसा लीडर भी यही सब करे, ठीक नहीं है। सोचकर देखो। फुरसत के क्षण में खुद से संलाप करो। सोचो, आज से पाँच साल बाद किन लोगों के बीच तुम्हें जाना है। ‘आई कैन डू इट’ कहना है। उस जनता की नब्ज़ टटोलो, नरेन्द्र जो इस घड़ी बीमार है। महंगाई की मार से बेहाल है। नौकरियों के लिए सड़कों पर जार-जार है, लड़कियाँ सामाजिक-प्रशासनिक सुरक्षा के लिए तुम्हारा मुँह जोह रही हैं। माताएँ तुमसे अपने बच्चों की बीमारी ठीक कराने वास्ते अपने सरकारी अस्पताल में दुरुस्त व्यवस्था माँग रही है। नरेन्द्र तुम्हारी तैयारी प्राकृतिक आपदाओं से बचने के लिए व्यावहारिक होने चाहिए। करोड़ों रुपए जारी करने मात्र से पीड़ित लोगों तक वे नहीं पहुँच जाते हैं। अपने कथन और प्राप्त परिणाम में मेल दिखाओ। यह बताओ कि किन-किन लोगों ने बिना इंटरव्यू दिए नौकरी पा ली। उनका नाम, सम्पर्क-सूत्र, मोबाइल साझा करो। लाभुक जनता का नाम, स्थान, पता और दूरभाष आॅनलाइन लेकर आओ। हेल्पलाइन नम्बर लाओ। सीधे अपने को लिखने को कहो। खुद को सम्बोधित कर लिखे लोगों की शिकायत का निपटारा यथाशीघ्र करने की कोशिश करो। शिकायतकर्ता से यह जानने का प्रयास करो कि क्या वह हमारे कार्रवाई और सेवा से संतुष्ट है। सिर्फ लिखे/छापे दस्तावेज में निपटारा ठीक नहीं है। और आजकल यही तेजी से हो रहा है। मैं स्वयं भुक्तभोगी हूँ।

नरेन्द्र, तुम शाखा के आदमी हो, संघ के सुपात्र हो। तुम्हें दया, करुणा, प्रेम, सद्भावना कूट-कूट कर भरी होनी चाहिए। याद रखो, नरेन्द्र तुम जनता का सम्मान करो...वह तुम्हे इज़्जत बख्शेगी; लेकिन जनता के साथ छल किया, तो वर्तमान को इतिहास बदलते देर नहीं लगती। नरेन्द्र, इतिहास का मतलब समझते हो न!


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--- (मैं एक लिक्खाड़ आदमी हूँ, मेरी बात में आने से पहले अपनी विवेक-बुद्धि का प्रयोग अवश्य कर लें!-राजीव) एक अध्यापक हूँ। श्रम शब्द पर वि...