Saturday, April 23, 2011

परीक्षा में फेल, न नेट हुए न जे0 आर0 एफ0

उम्मीद हरी-भरी थी कि इस बार खालिस पास न होंगे बल्कि जे0 आर0 एफ0 अवार्ड होगा. परिणाम आया तो पेटकुनिया सो कर घंटों से रो रहे हैं. मेहनत का सिला यह कि पाँचवी बार यूजीसी-नेट में ‘मन भर गदहे’ का सर्टिफिकेट मिल गया. घरवालों ने कहा कि क्या पढ़ते हो कि कुल जमा 200 में से 80-90 अंक भी नहीं आ रहे हैं। घास-फूस लिखोगे तो परीक्षक क्या खाक नंबर देगा. खर-पतवार लिखो और उम्मीद करो रुपली अंकों की. प्रतिभाशाली पास कर गए, बचे गंवार तुम जैसे श्रेणी के लोग. काम के न काज के, सेर भर अनाज के. केतली में चाय बेचो या फेरी करते हुए चायछनी. पढ़ाई-लिखाई तुम्हारे वश की बात नहीं. शादी कर ही दिया है. बच्चे भी पैदा कर ही लिए हो. अब गृहस्थी में मन रमाओ. देश-चिंता छोड़ कर घर-बार में हिया लगाओ. दो-अन्नी से चवन्नी या अठन्नी जो बना सको, तत्काल बनाना शुरू कर दो.

अब कौन इन्हें समझाए कि पिछली दफा मैं थोड़ा-सा के लिए चूक गया था. ‘जनसंचार एवं पत्रकारिता’ विषय में नेट/जे0आर0एफ0 होना आसान बात नहीं है. अंग्रेजी माध्यम से लिखने वाले तो बाजी मार भी ले जाते हैं. हिन्दी माध्यम से लिखकर पास होने वालों की अक्सर नानी याद आ जाती है. मुझ से कम जानकार अंग्रेजी में बढि़या अंक पा जाते हैं. किस्मत है, माया है.

लेकिन घरवाले पूछते हैं कि इस बार संपूर्ण परिणाम में कुल कितने नेट और कितने जे0आर0एफ0 हुए. मैं गिनती करता हँू, हजार से ऊपर बैठते हैं. बताता हँू तो घरवाले कहते हैं कि बबुआ अपने एम0ए0 के गोल्ड मेडल का आमलेट बनाकर खुद ही खाओ, लेकिन हमें चखाओ मत. दुनिया भर के लड़के पास हो कर देश का नाम रौशन कर रहे हैं, और एक तुम छछलोल हो कि बिना किए-धरे सबकुछ पाने कव स्वांग रच रहे हो.

कुछ दिनों बाद सबकुछ सामान्य. अगले माह फिर यूजीसी नेट की परीक्षा तय है. प्रवेश पत्र भी मिल चुका है. उम्मीद फिर हरे-भरे हो चले हैं.....सोच है, छठी बार तो दांव लगेगा ही ससूर...!

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हँसों, हँसो, जल्दी हँसो!

--- (मैं एक लिक्खाड़ आदमी हूँ, मेरी बात में आने से पहले अपनी विवेक-बुद्धि का प्रयोग अवश्य कर लें!-राजीव) एक अध्यापक हूँ। श्रम शब्द पर वि...