चन्द्रसेनजीत मिश्र
सभी को नहीं मिल पाता
अवसर
खुले आकाश के तले
अधलेटे निहारने का मौका
टिमटिमाते तारों को।
जिन्हंे है पूरा अवकाश
तारों और चाँद को निहारने की
उन्हें नहीं मिल पाता
भरपेट भोजन।
और जिनके पास
होता है
रोटियों का ढेर
उन्हें खुले आसमान के
तारें नसीब नहीं होते।
(युवाकवि चन्द्रसेनजीत काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के प्रयोजनमूलक हिन्दी(पत्रकारिता) के स्नातकोत्तर के विद्यार्थी हैं। अंतस की हलचल को अपनी दृष्टि, अनुभव और संवेदना की धरातल पर परखते हुए उसे शब्दों में ढालने का उनका प्रयास अनोखा है, चाहे यदा-कदा ही सही। ब्लाॅग ‘इस बार’ में पढि़ए उनकी कविता ‘अपना-अपना आकाश’)
Saturday, April 30, 2011
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