
तन से सुघड़।
मन से खुली।
अल्हड़। बिंदास।
सुपर्ब। फण्टास्टिक।
चोखा। माल।
किस्म-किस्म के जिस्म। रुपली पर नहीं, रुपहले पर्दे पर। कम एण्ड ओपन दि डोर। लोकलाज नहीं। शर्म या लिहाज नहीं। फटाफट टाइप। और चेहरे देखने शुरू। फोटो का धंधा। दृश्य का धंधा। नंगई और खुलेपन का बाज़ार। उपभोक्ता जो की-बोर्ड पर क्लिक के समय अपनी उम्र 18 से पार आंकता है। घंटों इंटरनेट पर। पोर्न साइटों पर। कामोत्तेजक चित्र एवं दृश्यों के साथ। काम-भावना से उन्मत इन क्लिपों में आपकी मर्जी पर तकनीकी दुनिया में समाया ‘आभासी लोक’ मनमर्जी करने लगता है। हम रिश्तों को भूल जाते हैं। सम्बोधन का अर्थ से सम्बन्ध-विच्छेदन हो जाता है। हर स्त्री जिसका फोटो पोर्नोग्राफी में चस्पा है, उनका मांसल शरीर और देह का उभार हमारे लहू के तापमान को बढ़ा देता है। आपके एक क्लिक पर सैकड़ों फोटो उभरते हैं स्क्रीन पर। वहीं हजारों उससे ‘डिफरेंट’ तस्वीरें हमारे मन में बनने लगती हैं। यह भी एक किस्म की अकथ कहानी है। आइए इसका एक सिरा पकड़ पड़ताल करें और देखें कि वेबजगत की इन काम-वीरांगनाओं की असली असलियत क्या है....?
(आप पढ़ सकेंगे ‘इस बार’ में जल्द ही - राजीव रंजन प्रसाद)
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