Tuesday, April 5, 2011

अनशन का हासिल

बहुप्रतीक्षित तारीख 5 अप्रैल।
आज से शुरू है अन्ना हजारे का आमरण अनशन। इस मुहिम में हर देशवासी शामिल है-अपरोक्ष या परोक्ष ढंग से। लोकतांत्रिक व्यवस्था की सड़ांध और सत्ता के नकारापन को दूर करने के लिए गाँधीवादी चिंतक तथा सामाजिक एक्टिविस्ट 74 वर्षीय अन्ना हजारे ने लोकपाल विधेयक को बिना शर्त लागू किए जाने की खातिर यह मार्ग चुना है।

गाँधी के सिद्धांतों को अडिग आस्था और विश्वास के साथ मानने वाले अन्ना हजारे के साथ इस वक्त तकरीबन 80 हजार लोग शामिल हैं। न्यू मीडिया के फेसबुक संस्करण पर करीब 23 हजार लोग हमराही या हमकदम बन चुके हैं। एक अनुमान के मुताबिक लगभग 25 लाख लोगों के इस आंदोलन में शामिल होने की आस है। युवा सहित कई सज्जन-लोग पूछ रहे हैं यह अनशन क्यों...? किसलिए...? ...और किसके लिए? बताने वाले बता रहे हैं सबकुछ।

इसी क्रम में नंबर 022615000792 पर एक मिसकाॅल करने का आग्रह भी कर रहे हैं। दिल्ली के जंतर-मंतर पर देश भर से जुटे 200 लोग उपवास के साथ अनशन प्रारंभ करने हेतु कटिबद्ध हैं। इस बात की सूचना मय देशवासियों को विविध माध्यम से दी जा चुकी है और अभी भी दिए जाने की प्रक्रिया जारी है।

अधिकांश भारतीय इस घड़ी उनींदी अवस्था में हैं या फिर अलसाए हुए से। कलतक वे क्रिकेट विश्वकप जीते जाने की प्रसन्नता में रात्रि-जागरण के अभियान में लगे थे। ‘विजयी विश्व तिरंगा प्याारा’ का धुन बजाते हुए खूब हो-हल्ला, हुल्लड़ और आतीशबाजियाँ की थीं। अन्तरराष्ट्रीय निगाह में राष्ट्रगौरव की सबसे बेशकीमती थाती पाए भारतीयों को देश में व्यापत भ्रष्टाचार का भान है, लेकिन वे साफ मौन हैं क्योंकि उन्हें इस बारे में मुँह खोलने के मायने समझ में नहीं आते हैं। देश की संपति-परिसंपति का लूट और बंटाधार जारी है, लेकिन इस बाबत कुछ कहने से जी डरता है कि कहीं स्वयं की मुनाफा वाली जेब न कट जाए।

वे निहाल हैं कि देश के वर्तमान प्रधानमंत्री से लेकर भावी प्रधानमंत्री का टैग लटकाए कांग्रेस युवराज तक उनके साथ क्रिकेटिया जुनून में शामिल हो चुके हैं। सो वे देश की सत्ता, शासन और नौकरशाही के भ्रष्ट आचरण के खिलाफ आयोजित इस अभियान का अर्थ नहीं थाह पा रहे हैं। वे अंदाज रहे हैं, आमरण अनशन का हासिल क्या होगा...? इरोम शर्मीला जो दस वर्षों से ऐसे ही गाँधीवादी सत्याग्रह और आमरण अनशन में मर-खप रही हैं या फिर खुद जंतर-मंतर स्वयं ऐसे कई बिंबों-प्रतीकों का गवाह रहा है, क्या बात कभी सुनी गई?

हम उन्हें आश्वस्त कर रहे हैं, हाँ इस दफा सुनी जाएगी। आपसे गुज़ारिश है कि इस विश्वास और मुहिम की लकीर लंबी करने खातिर आप भी हाँ करें और हमारे इस अभियान को जरूरी संबल दें क्योंकि नई लकीर लक के सहारे आगे नहीं बढ़ती; उसकी उम्र हम लंबी करते हैं।

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हँसों, हँसो, जल्दी हँसो!

--- (मैं एक लिक्खाड़ आदमी हूँ, मेरी बात में आने से पहले अपनी विवेक-बुद्धि का प्रयोग अवश्य कर लें!-राजीव) एक अध्यापक हूँ। श्रम शब्द पर वि...