Sunday, April 24, 2011

सौ टके की एक-एक बात



1. आम-आदमी रोजमर्रा की ढेरों छोटी-बड़ी मुश्किलों से घिरा है। इन समस्याओं को सरकारी मुलाजिमों ने और भी सुरसाकार बना डाला है। कागजी धरातल पर इन सेवकगणों की ताकत भले गौण दिखती हो किंतु जनता की जेब पर सर्वप्रथम गैरकानुनी हाथ यही फेरते हैं। कहाँ एक ओर जनता जिंदगी की मूलभूत जरूरतों से महरुम है। असमय अपने आत्मीयों को खो रही है; वहीं दूसरी ओर नया बना धनाढ्य वर्ग व्यक्तिकेन्द्रित ‘पूँजी की पराकाष्ठा’ पर बिछे जा रहा है।

2. भूख-प्यास से विकल इन समुदायों की समस्या अत्यंत विकराल है। राहत के जो संसाधन मौजूद हैं वे भी या तो सीमित हैं या फिर अपर्याप्त। तीस पर सरकार के नीति-नियंता नोच-खसोट के नए-नए तरीके ईजाद कर रहे हैं। भ्रष्टाचार के आवरण में लिप्त नेता-हुक्मरानों की धनलिप्सा जगजाहिर हैं जिससे उनके पार्टी-एजेण्डे पर छिड़के खुशबूदार इत्र कोई प्रभाव न छोड़ पा रहे हैं। सामाजिक-राजनीतिक विभिन्न पहलूओं की सूक्ष्म पड़ताल के साथ बारीक विश्लेषण करें तो चैंकाने योग्य निष्कर्ष सामने आते हैं। उनमें से एक तो यही कि शासकीय कर्मचारियों की लूट-शाखा सर्वाधिक समृद्ध है। ये सरकारी बाबू सदैव उन रास्तों को चैाड़ा करने के फिराक में रहते हैं जिस मार्ग से अधिकतम सरकारी राशि की निकासी सबसे सुविधाजनक है।

3. यह लूट की चादर इतनी चौरस है कि इसमें भ्रष्टाचार के असीम आँकड़े आसानी से समा सकते हैं। भ्रष्टाचार की बात निकली तो आपको बता दें कि आपमें से जो लोग भी भ्रष्टाचार के दैत्य से परिचित हैं उनमें से बहुलांश इन प्रवृत्तियों को खत्म करने की दिशा में पहलकदमी करते दिख रहे हैं। यह पहलकदमी फौरी तौर पर समाजसेवी अण्णा के अनशन वाले फलसफे की उपज न हो तो भी लोकहित में इसका महत्व अत्यंत विशिष्ट है। आचरण की शुद्धता या चरित्र की शुचिता के प्रश्न पर हम कितने भी ढोल पीट लें, बाकी सचाई यही है कि भ्रष्टाचार के काले अक्षरों को मिटाना तभी संभव है जब जनभागीदारी समग्र मानवीय चेतना के साथ एकजुट हो।

4. मध्यप्रदेश में पिछले सात महीने से लागू लोकसेवा गारंटी अधिनियम का जिक्र करते हुए पत्रकार मनोज जिन महत्त्वपूर्ण बिन्दुओं की ओर हमारा ध्यान आकृष्ट कराना चाहते हैं उन्हें चाहकर भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। उनका सुझाव गौरतलब हैं कि भ्रष्टाचार पर चोट जरूरी है लेकिन यह जानना तो और भी जरूरी है कि हम सही चोट कहाँ करे? ‘सौ सुनार की, एक लुहार की’ कहावत के तर्ज पर किए जाने वाले प्रहार से भ्रष्टाचार के रवे निश्चित रूप से कमजोर होंगे; साथ ही इसमें लिप्त भ्रष्ट लोगों के ऊपर वाजिब कार्रवाई भी संभव हो सकेगी।

5. भ्रष्टाचार के जिन सुकोमल प्रतीत होते पौधों की ओर पत्रकार मनोज इशारा करते दिख रहे हैं; उन्हें वटवृक्ष बनने से रोकने की जिम्मेदारी हमारी है। देशवासियों की संचित ऊर्जा का अपव्यय किसी कीमत पर न हो, इस ओर हम ध्यान दें तथा भ्रष्टाचार के निवारण हेतु संकल्पयुक्त अभियान को दिशा दें; यह बेहद जरूरी है। मध्यप्रदेश में चालित लोकसेवा गारंटी अधिनियम की तरह अन्य प्रान्तों में इस कानून-प्रावधान को लागू किया जाना अपनेआप में एक बेहतर कल की तलाश है जिसमें हिस्सेदारी का मतलब अपने साथी, समाज, संस्कृति और सामुदायिक विश्व के प्रति जवाबदेह बनना है।

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