Saturday, May 4, 2013

सलाह/सुझाव/आदेश


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राष्ट्रीय मुद्दों पर,
राजनीतिक घटनाक्रमों पर,
सामाजिक-आर्थिक चिन्ताओं के मोर्चे पर,
कला, साहित्य और संस्कृति की स्थितियों पर,
धर्म, दर्शन और ज्ञान की अधुनातन प्रवृत्तियों पर,
क्षेत्रीय भूगोल, राष्ट्रीय संचेतना और अन्तरराष्ट्रीय प्रभुत्वों के ऊपर

रजीबा तुम ही लिखोगे

तो देश के
इतने स्कूलों
इतने महाविद्यालयों
इतने विश्वविद्यालयों
इतने सरकारी-गैरसरकारी संस्थानों, नामी-गिरामी जनमाध्यमों
संगोष्ठी, सेमिनार, संवाद-विमर्श स्थलों
रैली, चिन्तन-शिविरों, पीठ-महापीठों
ख्यातनाम सम्पादकों, पत्रकारों, बुद्धिजीवियों, साहित्यकारों, वैज्ञानिकों, ब्लाॅगिस्टो, एक्टीविस्टों,
अन्यन्य राजनेताओं, अभिनेता-अभिनेत्रियों, खेल-खिलाड़ियों, सुपर माॅडलों, डूपर बिजनेसमैंनों आदि कि

फिर सुनेगा कौन.....?

उम्र है
थोड़ा लव-सव करो
प्यार-तकरार की बातें
जरा इमोशनल, हल्का रोमान्टीक हो लो
चहक की चाँदनी को करो स्पर्श
मन की तरंगों को न करो नियन्त्रित
अपने को बह जाने दो मौके की रौ में
न सुनो आज कल क्या हुआ?
आगामी कल की चिन्ता से पा लो मुक्ति

अरे! रजीबा!
‘एक कमजोर की थाली में दूसरे कमजोर की इज्ज़त परोसी जाती है
और दावत शक्तिशाली उड़ाता है’
यह लिखने के लिए तुम्हारी उम्र पर्याप्त है।

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हँसों, हँसो, जल्दी हँसो!

--- (मैं एक लिक्खाड़ आदमी हूँ, मेरी बात में आने से पहले अपनी विवेक-बुद्धि का प्रयोग अवश्य कर लें!-राजीव) एक अध्यापक हूँ। श्रम शब्द पर वि...