Monday, September 16, 2013

बर्फपात


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आसमान के बरास्ते

यात्रा कर
लम्बी दूरी तय कर
पहुँचता है बर्फ
मेरे पास
मैं दोहरा हो जाता हूँ
खुशी से मुटा जाता हूँ

जब भी आता है बर्फ
बर्फपात के दिनों में
मेरी हथेली पर
उसके आँख में चमक
और मेरे चेहरे पर मुसकान होती है
मैं पुकारता हूँ
-आ गए बर्फ
बर्फ प्रसन्नभाव से कहता है
-हाँ राजीव!

एक बात
मैंने नहीं पूछा कभी
बर्फ तुम्हारे घर में
कौन-कौन हैं?
चाहकर भी नहीं
सोचकर भी नहीं

मैं नहीं पूछ पाया कभी
बर्फ तुम्हारे देश में
चिड़ियाँ ही उड़ती है आसमान में
या एरोप्लन, हेलिकाॅप्टर, लड़ाकू विमानें
तुम्हारे देश में नदियों में सिर्फ पानी ही बहता है
या खूनी समुन्दर भी हैं
जिसमें चलते हैं
जंगी बेड़ों के युद्धवाहक पोत

मैंने नहीं जानना चाहा कभी
क्या तुम्हारे देश में भी नेता चुनावी दौरा करते हैं
और भाषण देते हैं, सुशासन का, रामराज्य का
वैसे पूछना अवश्य चाहिए मुझे
कि वहाँ सरकार, लोकतंत्र, बाज़ार-व्यापार आदि में
धंधेबाजी, गुटबाजी, कब्ज़े और लूट की धाक किस हद तक अमानुषिक है?

इस बार
मैं सूची तैयार कर रहा हँू

मैं शान्तिपूर्वक पूछूँगा यह सब
यह जानते हुए कि
हमारे यहाँ शान्ति के रंग कम दिखते हैं
अपराध और आतंक ही असली रंगरेज है
मैं पूछूँगा
यह सब कुछ
साथ-साथ यह भी
कि कौन है उनका लोकप्रिय कवि
कि कौन है उनका प्रिय साहित्यकार
कि कौन-सी भाषा बोलते हैं वे लोग
कौन-सी है लिपि उनके यहाँ लिखे-छपे का
उनके यहाँ कौन सुखिया है और कौन दुखिया?
गाँव, शहर, महानगर में बिजली टिकती है कितनी देर?
शादी-विवाह में मंडप या बैन्ड-बाजे के लिए
कितना महँगा तय करते हो किराया
और कौन कितना अधिक देता है बयाना?
पर्व-त्योहार के मौके पर कैसे करते हो हँसी-हुल्लड़
या तुम्हारे यहाँ भी अपना अलग-अलग राग है

इस बार
मैं सूची तैयार कर रहा हँू

मैं यह भी पूछूँगा
तुमलोग कैसे करते हो पहचान अपने और पराए की
मित्र और दुश्मन की
सीमा अन्दर और सीमा बाहर की
कौन किससे लड़ता है युद्ध
कौन जीतता और कौन होता है परास्त
कैसे लूटते हो खजाने
टाँगते हो आधिपत्य के तम्बू-कैनात
सभ्यता, संस्कृति, परम्परा, विरासत इत्यादि को
ध्वस्त करने में कितना लगता है आखिर वक़्त
वर्चस्व अपना हो जाने पर किसी क्षेत्र में
कैसे करते हो अपने प्रभुत्व की घोषणा
कभी मुसीबत गले फँसने पर
अपनी बचाव में
तोप, बम, रासायनिक हथियार का कैसे और कितनी मात्रा में करते हो इस्तेमाल?

इस बार
मैं सूची तैयार कर रहा हँू

यह जानते हुए कि
ये सवाल
बर्फ के किसी एक टुकड़े से हो ही नहीं सकते हैं
क्योंकि बर्फपात में होती है
सामूहिकता की चेतना
अलगाव-विलगाव से विपरीत
एक स्वभाव, रूप, गति, अवस्था इत्यादि का गुणधर्म
धर्म, भाषा, वर्ग, समुदाय, वर्ग, लिंग इत्यादि का अद्भुत ऐक्य
जबर्दस्त साम्य
गलनांक एक
सूचकांक एक
भूगोल एक
संविधान एक
ज़्ाबान एक
सोच और संकल्प एक
और एक ही जीवन

बर्फपात के दिनों में
आप कभी बर्फ को देखिए, तो सही
अनुपस्थिति में
मैं उसकी स्मृति से भी बेइंतहा प्यार करता हूँ।

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हँसों, हँसो, जल्दी हँसो!

--- (मैं एक लिक्खाड़ आदमी हूँ, मेरी बात में आने से पहले अपनी विवेक-बुद्धि का प्रयोग अवश्य कर लें!-राजीव) एक अध्यापक हूँ। श्रम शब्द पर वि...