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तकलीफदेह इस समय में मैंने ‘इस बार’ में खूब लिखा। शब्द से पेट नहीं भरते। भाषण से अन्याय खत्म नहीं होते...कविता-कहानी से आदमी का कल्याण नहीं हो सकता....यह सब सुनते-समझाए जाते हुए।
लेकिन, ‘इस बार’ बंद कर रहा हूँ। एक तो मैं तकनीकी अ-जानकारी की वजह से पाठकों को न जोड़ सका और यदि कोई आया भी तो उन्हें प्रभावित न कर सका।
ऐसे में मैं ‘इस बार’ बंद कर औरों की आँख में झाँकना चाहता हूँ कि वे आखिर कैसे रच रहे हैं , शब्दों की दुनिया....बना रहे हैं भाषा के डैने...हमारे उड़ने के लिए।
सबसे अधिक माफी अपने देव-दीप से.....आपदोनों को चिट्ठी लिखते हुए मैंने अपने बचपन को जिया...अपने पापा की चिट्ठी से ‘रेस’ की जो आज भी मेरे पास सुरक्षित हैं।
इस नई दुनिया ने काफी कुछ खा-चिबा डाला....मेरे पापा अब मुझ चिट्ठी कहाँ लिखते हैं....मम्मी किसी त्योहरी में चिट्ठी के साथ 100 रुपइया कहाँ भेजती हैं......,
खैर, ‘इस बार’ बंद कर रहा हूँ ताकि तल्लीनता से लगकर अपने और अपने घरवालों का सर उठाने लायक कुछ कमाई-धमाई कर सकूँ....मम्मी की भाषा में...कुछ ढंग का काम-वाम।
शुक्रिया!
1 comment:
रंजन साहब इस बार को बंद मत करिए। मेरा अनुरोध है कि लेखन जारी रखिए।
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