Friday, July 4, 2014

वाह! रजीबा वाह!

1.

बहुत दिन हो गए थे-‘हँसे’,
जब बुरे फँसे, तो खूब हँसे।

2.

सुना था-‘खिसियानी बिल्ली खंभा नोंचे’,
आज अपनी ही बालों का कचूमर निकाला।

3.

नौकरी लगी, तो क्या करूँगा,
पैर पसार हीक भर सोऊँगा।

4.

जिनके पास दौलत है बेशुमार
वे भी रहते हैं बुरी तरह बीमार।

5.

मोदी जी प्रधानमंत्री बनने के लिए खूब पापड़ बेले
आइए, हम सब बेले हुए पापड़ों को मिलकर खाएँ।

6.

जो कहा जाये-‘मत करो’, ‘नत करो’
दिल कहे, तो उसके लिए सब करो।

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हँसों, हँसो, जल्दी हँसो!

--- (मैं एक लिक्खाड़ आदमी हूँ, मेरी बात में आने से पहले अपनी विवेक-बुद्धि का प्रयोग अवश्य कर लें!-राजीव) एक अध्यापक हूँ। श्रम शब्द पर वि...