
कलम चलाने वाले बहुतेरे हैं जो इस आस में लिख रहे हैं कि देश के हाल-ओ-हालात सुधरेंगे। उल्टे बाबा रामदेव की हालत बिगड़ रही है। इस अप्रत्याशित समाचार ने मुझे अंदर तक भिंगो दिया.मैं विकल हुआ लिखने को कि यह तो सरकार की ज्यादती है। अचानक उसी घड़ी मोहतरमा का फोन आना था। दो-तीन बार काटा; क्योंकि दिमाग में बाबा-मंथन चल रहा था. मोबाइल कॉल की उधर से ‘रिपिटेशन’ बढ़ते देख, सोचा कि इनको एकाध-शब्द में निपटा ही लूँ।
फोन उठाते ही उनके सवाल से सामना हुआ-‘क्या चल रहा है?’
मैंने झट से कहा-‘यूजीसी नेट की तैयारी।’
सुनकर अच्छा लगा होगा, तभी तो वह बड़े भाव के साथ ‘गुडनाइट’ कहने को उद्धत हुई थी कि मेरे जीभ ने सच बतलाने की नंगई कर दी-‘सच कहूँ, तो अभी जी नहीं लग रहा था। बाबा रामदेव की बिगड़ती हालत के बारे में सुन बेचैन हँू। एक बंदा हमारे लिए सरकार से भिड़ गया है। अन्न-जल छोड़ दिया है। ऐसे दिव्य-संत के समर्थन में मुझ जैसे लिखनेवाले कुछ न लिखें, तो धिक्कार है। नाहक ही पत्रकारिता में ‘गोल्ड मेडल’ ले रखा है। रोज़-रोज़ तो अपना कोर्स-सिलेबस पढ़ना ही है।’’
फोन कट चुका था। सोचा इतना झाँसेदार कहने का असर सकारात्मक ही पड़ा होगा। एक कॉल लगाकर उनकी दिली राय जान लेने की इच्छा मेरे मन में प्रबल हो उठी। लेकिन मैं शत-प्रतिशत ग़लत था। उनका उधर से लगभग फटकारने के अंदाज में स्वर सुनाई दिया-‘इहे कमाई काम देगा न!’
मुझे लगा कि वैवाहिक जिम्मेदारी और नौकरी का जुगाड़ मेरे लिए पहला मोर्चा है। किसान नेता महेन्द्र सिंह टिकैत और एम0 एफ0 हुसैन जैसों का आना-जाना दूसरा। और जहाँ तक बात बाबा रामदेव की है, तो ब्लॉगों पर विचारों की आवाजाही सहित उनके सेहत को लेकर फिक्रमंद लोगों की आवक इस घड़ी अकालग्रस्त नहीं है। देश में चिन्तक-बौद्धिक राज भर के हैं। संपादक, प्रबंधक, नेता-परेता, अफसर-मंत्री और न जाने कितने गांज भर के लिखने वाले दिग्गज लोग हैं। सभी पहुँचे हुए आसमानी जन हैं। अपनी बातों के दमखम, तर्कशीलता और सुझाव-सलाह से देश में नव्य-बदलाव लाने वाले। लेकिन मेरे पास क्या है...? यह जानने के लिए मैं अपना नाम गुगल सर्च इंजन में डालकर देखता हँू....! ’
1 comment:
Bahut achchha lagaa sir......aapke shabdon ka chayan atyant sateek hai...God bless you
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