Saturday, June 4, 2011

राष्ट्र-विकास का कार्यभार बाबा को सौंपे सरकार



इस घड़ी भ्रष्टाचार का मुद्दा राष्ट्रीय पटल पर है। समस्याओं से त्रस्त लोग वैकल्पिक शासन-ढाँचे की आस में बाबा रामदेव की ओर निगाह टिकाए हुए हैं। हाल के दिनों में अण्णा हजारे और बाबा रामदेव को मिला व्यापक जनसमर्थन इस बात का गवाह है कि भारतीय मानस बदलाव का आकांक्षी हैं। बाबा रामदेव ने अण्णा हजारे के जनलोकपाल विधेयक की तरह ही देश में एक जबर्दस्त मुहिम छेड़ा है जिस मुहिम का मुख्य ध्येय काले धन की देश में वापसी सुनिश्चित करना है जो विदेशी स्विस बैंकों में नजरबंद है।

स्वाधीन भारत में लोकतंत्र का तमाशाई खेल सामने है। कांग्रेस इस खेल का ‘मास्टरमाइंड’ है। अन्य पार्टियों के कारनामे गौण हैं। देश को सर्वाधिक लूटने का काम कांग्रेस ने ही किया है। भाजपा पर साम्प्रदायिक पार्टी होने का तोहमत मढ़ अक्सर उसके प्रयासों को धार्मिक गणवेष पहना दिया जाता है जबकि वह खुद ही अक्षम नेतृत्व की मारी एक विक्षिप्त पार्टी है। बाबा रामदेव भी देश के सामने आज भगवा-गणवेष में प्रकट हैं। करोड़ों-करोड़ अनुयायी संग-साथ है। भयाकुल कांग्रेस अपने तीन आला मंत्रियों को एयरपोर्ट बाबा के आगवानी में भेजती है। लेकिन भारत स्वाभिमान आन्दोलन के प्रणेता बाबा रामदेव उन्हें बैरंग वापिस कर देते हैं। 24 घंटे के भीतर पूरे भारत में बाबा के ‘भ्रष्टाचार मिटाओ सत्याग्रह’ का अलख-निरंजन राग गाया जाने लगता है। पूंजीवादी मीडिया जिस पर अक्सर टीआरपी भुनाऊ आरोप लगते रहे हैं वह बाबा के इस आन्दोलन में अहर्निश समर्पित दिखती है। आमोख़ास की इस लड़ाई में जनमाध्यम इस वक्त बाबा के साथ कमरकस कर खड़ी है। जनज्वार का बढ़ता समन्दर इस सत्याग्रह के प्रभावशीलता को व्यापक बना चुका है। देश ही नहीं परदेसी जमीन पर भी बाबा के इस आन्दोलन का साफ असर देखा जा सकता है। अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा और आस्ट्रिया समेत 17 देशों में बाबा रामदेव के समर्थन में लोग एकजुट हैं।

नागरिक-समाज के प्रतिनिधि ताकत और आवाज़ बनकर उभरे बाबा रामदेव की ईमानदारी जगजाहिर है। साफ-सुथरी छवि के लोकतांत्रिक प्रतीक बाबा रामदेव को पूरा देश अपना नायक मान चुका है जो गाँधी की भाँति ‘बिना खड्ग-बिना ढाल’ रामलीला मैदान में शांतिपूर्ण सत्याग्रह कर रहे हैं। इस आन्दोलन के प्रति लोगों के अगाध प्रेम और निष्ठा का आलम यह है कि लोग हजारों-हजार की तादाद में रामलीला मैदान पहुँच रहे हैं। यह ‘साइलेंट रेव्यूल्यूसन’ है जिसके केन्द्र में राष्ट्र के प्रति बाबा रामदेव के अटूट व अपार विश्वास का ओज है।

पूरे प्रकरण में जनभागीदारी के स्तर पर जिस तरह से जनसैलाब उमड़ रहा है; काबिलेगौर है। बाबा रामदेव देश के भीतर मानवीय-शुद्धिकरण का नवराग छेड़ चुके हैं। इस पर निहाल होना इसलिए भी सहज आकर्षण का विषय है; क्योंकि राष्ट्र को अभी बाबा रामदेव जैसे यशस्वी नेतृत्वकर्ता की जरूरत है। कांग्रेस भले ही लोकतांत्रिक ढंग से लोकसत्ता का अधिकारिणी है, किन्तु जनहित में बाबा रामदेव के सद्प्रयास से राष्ट्र की गरिमा और समृद्धि को नया आयाम-नया क्षितिज प्राप्त हुआ है। इस घड़ी केन्द्र सरकार को अविलंब राष्ट्रीय विकास के बुनियादी मुद्दों से सम्बन्धित दायित्व बाबा रामदेव को सौंप देनी चाहिए। वे कर्मशील योद्धा हैं। उनकी दृष्टि में ऊँचे आसनों पर आसीन हो लोगों से मुखातिब होना और तालियाँ बटोरना सस्ती लोकप्रियता का पर्याय है।

भारत सरकार जिस तरह से देश में सामाजिक, सांस्कृतिक तथा शैक्षिक कार्यक्रम चला रही है; वे कागजी ज्यादा हैं जबकि देश की बुनियादी समस्याओं से संपृक्त कम। ऐसे विकास-परियोजनाएँ जिसे विश्व बैंक, अन्तरराष्ट्रीय बैंक, यूनिसेफ और यूनेस्को सहित अन्य विकसित देशों से भारी मदद मिलने के आसार सौ-फीसदी हैं; वे योजना बाबा रामदेव के भारत स्वाभिमान ट्रस्ट को इन शर्तो पर दी जाए कि उनका संगठन देश में बुनियादी स्तर पर रचनात्मक संवर्द्धन, टिकाऊ विकास एवं संरचनागत मजबूती प्रदान करने की दिशा में काम करेगा। नरेगा, मनरेगा और इसी तरह के अन्य कार्य जिसमें भारी मात्रा में आर्थिक बजट शामिल हो; सरकार सीधे भारत स्वाभिमान ट्रस्ट एवं इसी के अनुषंगी संगठनों को दे। पहली बात तो ऐसा होने से विकास-कार्य का हस्तांतरण सही हाथों में चला जाएगा। दूसरी तरफ देश में नीति, नैतिकता, मूल्य, मर्यादा, निष्ठा, परोपकार एवं मानवीय उदात्तता के विलक्षण चिह्न भी परखे जा सकेंगे।

सर्वजनसुखाय कल्याण की दिशा में यह पहलकदमी स्वागत योग्य है। बाबा रामदेव ने उत्तम टीम-प्रबंधन के जरिए जिस तरह से आमोंखास सभी लोगों को अपने साथ समेटा है अगर उसी नेतृत्व-क्षमता को जनकल्याण से सम्बन्धित समस्त जिम्मेदारियाँ सौंप दी गईं तो राष्ट्र आगामी कुछ ही वर्षों में पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम के ‘विजन-2020’ का लक्ष्य हासिल कर लेगा। साथ ही विपक्षी पार्टियाँ जो इस वक्त बात-बात पर सरकार को घेर रही हैं। काले धन के मुद्दे पर सरकारी-तंत्र का छिछालेदर कर रही हैं। उनके लिए भी मुद्दे पर हवाई फायर करने की बजाय लोक के बीच जाकर अपनी विश्वसनीयता प्रदर्शित करने का सुअवसर मिल जाएगा। साथ ही बाबा रामदेव जो जनपीड़ा से आक्रांत होकर आमरण अनशन करने के लिए प्रेरित व बाध्य हो रहे हैं, उन्हें भी उससे मुक्ति मिल जाएगी।

वैसे भी हाथ की सफाई से जादू कर दिखाना अगर किसी द्रष्टा को आसान लगता हो तो इसका यह मतलब नहीं कि उसका उपहास उड़ाएँ या फिर अवहेलना करें। विवेकपूर्ण एवं तार्किक कौशल तो यह कहती है कि अमुक व्यक्ति को सहर्ष एक मौका प्रदान कर देना ही श्रेयस्कर और सर्वोचित निदान है।

No comments:

हँसों, हँसो, जल्दी हँसो!

--- (मैं एक लिक्खाड़ आदमी हूँ, मेरी बात में आने से पहले अपनी विवेक-बुद्धि का प्रयोग अवश्य कर लें!-राजीव) एक अध्यापक हूँ। श्रम शब्द पर वि...