Tuesday, June 14, 2011

ख़त, आपबीती और मैं

परमआदरणीय पापा एवं मम्मी जी,
सादर प्रणाम!

यूजीसी-नेट का परिणाम आया, तो मेरी बाँछे खिल गई। जनसंचार विषय से जेआरएफ होना मेरी योग्यता की सामाजिक पुष्टि भर नहीं थी। दरअसल, पापा का विश्वास जो मैंने जीत लिया था; मम्मी की आशीर्वाद जो लगी थी; भाईयों के दुलार ने मुझे मेरे परिश्रम का सुफल जो सौंप दिया था। खुशी के इस क्षण में सीमा भी याद आ रही है जिसके अविचल और अगाध प्रेम ने मुझे यह सब कर सकने की हिम्मत दी। देव और दीप की तो मत पूछिए। उनके होने की वजह से जो परोक्ष दबाव(आर्थिक नहीं) महसूस करता था आज उसने मेरे मेहनत करने की लय और त्वरा को बढ़ा दिया है।

पापा, आपके जीवट संघर्ष ने मुझे अकथ प्रेरणा दी है। छोटी-छोटी चीजों का बड़ा ख्याल करने वाले अपने पापा का मैं किन शब्दों में बयान करूँ, मुश्किल है। पैसे की मोल बहुत कीमती है, लेकिन आपने उसे मेरे ऊपर जी भर के लुटाया। शादी के इतने दिनों बाद भी मैं आपके किसी खीज या चिड़चिड़ेपन का शिकार न बना। ऐसे पिता का पुत्र होने का गौरव मिला है, यह सोचते हुए आँखें सजल हो उठती है।

मोती दा, कुलदीप दा, सत्येन्द्र दा, मनोज भैया, श्रीकांत मनु, मेरे चाचा जी, जीजा जी और ससुराल पक्ष सहित मुझसे या मेरे परिवार से जुड़े सभी लोगों का योगदान है इसमें। प्रमोद जी, अरविन्द जी, नीलम जी, मोतीलाल जी, प्रियंका, सोम भैया, अमित भैया, पंकज, सुजाता, अनुज, रणजीत भैया, अफ़जल, अभिषेक, सीमा, रजनीश, कृष्ण सभी का नैतिक समर्थन इस सफलता में अन्तर्निहित है। कुछ लोगों के अस्पर्शी चिढ़ भी मददगार रहे हैं। इनसे अलग छोटे भाई सरीखा ज्ञानवर्द्धन का उल्लेख आवश्यक है; ज्ञान के साथ मैंने आपसी विवेक का जो ताना-बाना बुना है; वह अद्भुत है।

हाल के दिनों में घरेलू कोलाहल से मन अशांत और खिन्न था। शोध करने की अदम्य इच्छा जाती रही थी। मन उचट रहा था, तो मन में उथल-पुथल की ढेरों चक्रवात उफन रहे थे। मम्मी और सीमा के आपसी तारतम्य में संवादहीनता ने मुझे कई मौकों पर बेहद विचलित किया था। मुझे ध्यान है, मेरे आचार्य ने अनबोले और अनकहे अन्दाज में मुझे हिम्मत दी थी। सबकुछ बेहतर हो जाने का भरोसा दिया था। ऐसे गुरुवर के इच्छानुरूप जल्द से जल्द शोध-प्रबन्ध जमा कर सकूं; इसकी उत्कट अभिलाषा है।

राजीव नौकरी के लिए अंधा होना नहीं चाहते हैं। वे तो रोशनी के लिए किरणों का टोही विमान बनना चाहते हैं; यह सचाई आपको भी मालूम है और मेरे आचार्य को भी। आज से सिर्फ शोध-सम्बिन्धित कार्य होंगे, शेष कुछ नहीं।

घर में सुकून और सलामती हो। सीमा मम्मी को खुश और प्रसन्न रखे। देव-दीप धमाल की अपनी आदत से दादा को छकाए। रवि-धीरज मेहनत करते जाने की सलाह को अमल में लाएँ, यही मीठी इच्छा है मन में मेरी। आने पर घर में ठाकुर अनुकूल चन्द्र जी का सत्संग हो; इस सम्बन्ध में वहीं पहुँचकर सलाह करूंगा।

फ़िलहाल इतना ही, विशेष मिलने पर।
आपका राजीव

2 comments:

डॉ. नागेश पांडेय संजय said...

अप्रतिम - अद्भुत - प्रेरक .


यह मन बहुत सबल है साथी !

chandrasen said...

badhai ho bhaiya!
aapki ye safalta ham logo ko prerit karegi aage badhne kelye.

हँसों, हँसो, जल्दी हँसो!

--- (मैं एक लिक्खाड़ आदमी हूँ, मेरी बात में आने से पहले अपनी विवेक-बुद्धि का प्रयोग अवश्य कर लें!-राजीव) एक अध्यापक हूँ। श्रम शब्द पर वि...