Tuesday, July 16, 2013

दुनिया का हर घटित हमारे मनःजीवन के दायरे में है...!



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(शोधपत्र निष्कर्ष)

यह स्वयंसिद्ध तथ्य है कि यदि प्रत्येक व्यक्ति
आसमान देख सकता है, तो आसमान भी प्रत्येक
व्यक्ति को देख सकता है....! घट-घट व्याप्त राम की
तर्ज़ पर.....! या कण-कण, क्षण-क्षण विराजे शिव की आध्यात्मिक भावना को समो कर....!

यहाँ आसमान से आशय उस
समष्टि-चेतना से है जिसके पास चेतन मन असंख्य है,
चिन्तनशील, क्रियाशील आत्मा अनगिनत हंै,
व्यावहारमूलक व्यक्तित्वों के बारे में क्या कहना उनके आपसी समूहन ने सोशल नेटवर्किंग
के रूप में जो करिश्मा कर दिखाया है उससे हम-आप सभी परिचित हैं।
जैसे सर्च इंजन के माध्यम से इन्टरनेट
पर देय सामग्री कोई भी कहीं भी देख सकता है। एक क्लिक में
जिस तरह आॅनलाइन विडियो से लिंकअप हुआ जा सकता है, अपने परिचिति-परिजनों
से साक्षात्कार किया जा सकता है। वैसे ही दुनिया का प्रत्येक व्यक्ति
‘फ्रैक्शन इन सैकण्ड’(नैनो सेकेण्ड) की सुपरजेट गति में अपने को वहाँ प्रकट कर सकता है
जहाँ उसका चेतस(प्रेरित/परीक्षित) मन जाना या पहुँचना चाहता है।

आसान-सी बात है। आपकी आवाज सैकड़ों-हजारों मिल दूर कैसे चली जाती है
इतनी जल्दी? कैसे आप ‘विडियो विजुअल्स’ देख लेते है...चटपट इतनी आसानी से?
जब इतना कुछ अपनी नज़रों से सत्य प्रकाशित होते देख रहे हैं...
और हमको चक्कर नहीं आ रहे....मतलब हम सहज विश्वास करने लगे हैं, चाहे यह
विज्ञान के लिहाफ में ही क्यों न हो तो फिर हमें इस नवीन संकल्पना से जुड़े
नए खोज, नवीन अनुसन्धान का अवश्य स्वागत करना चाहिए।
आज भले इसकी संगति करना थोड़ा अटपटा लग रहा है। लेकिन
कल देखिएगा, हमारा कोई परिजन/परिचित बीमार होगा और हम
वहाँ सशरीर उपस्थित न होकर भी उन्हें सांत्वना दे रहे होंगे,
डाॅक्टर से सिमटम-डिस्कस कर रहे होंगे।
इर्द-गिर्द की गतिविधियों/हलचलों, शहर के वातावरण से अवगत हो रहे होंगे।

यही नहीं हमारा सांसद संसदीय-सत्रों के दौरान संसद में बैठकर कैसी भागीदारी कर रहा है, अपना मित्र देर रात जगकर किस विषय पर प्रोजेक्ट तैयार कर रहा है,
हमारी गर्लफ्रेण्ड मोबाइल पर बात करने के बाद अपनी रूममेट को
हमारे बारे में क्या कुछ बता रही है....यह सब आसानी से देखा-सुना-महसूसा
जा सकता हैं। यह अत्याधुनिक तकनीक गूगल-मैप पर अपना गाँव-ज्वार,
घर-द्वार पाकर खुश-प्रसन्न होने से आगे की कड़ी है
जिसमें दुनिया का प्रत्येक कण प्रकाशित है, तरंगित है....उस तक
हम कभी भी किसी समय पहुँच सकते हैं।

दरअसल, यह वायवीय निगरानी है। स्वाभाविक। प्रकृति सापेक्ष।
निर्वात में प्रकाश की की गति है। माध्यम में ध्वनि की पहुँच है।
तो मन तो इन सबसे शक्तिशाली है....फिर वह पलक झपकते दिल्ली से दौलताबाद
क्यों नहीं पहुँच सकता है। हम आश्चर्य कर सकते हैं, लेकिन यह सत्य है।
कोई भी यंत्र/मशीन अपना काम सुचारू ढंग से करे, तो अपेक्षित परिणाम मिलते ही
मिलते हैं। आज मन को साधने, उसकी सूक्ष्म स्फूरण को पकड़ने की तकनीक विकसित कर ली गई है। परखनली शिशु, सरोगेट मदर, क्लेनिंग के बारे में एक समय
सोच पाना भी संभव नहीं था....आज ये अफसाने नहीं हकीकत हैं।

आज जब मन के संप्रत्ययों को विभिन्न ज्ञान-मीमांसा से जुड़े विशेषज्ञों
यथा-मनोविज्ञानियों, संचारविज्ञानियों, समाजविज्ञानियों, मनोभाषाविज्ञानियों, जैवविज्ञानियों, नुविज्ञानियों इत्यादि ने अबूझ मानना छोड़ दिया है, तो हमें भी इसके पराक्रम से परिचय करना
चाहिए। यदि विश्वमानव की अवधारणा है तो निश्चित जानिए कि
हम-सबका मन विश्वमन है। हम पूरे विश्व को अपने मन के
आन्तरिक-बाह््य प्रभाव से हर क्षण देख सकते हैं,
अनसुनी आवाज़ों को सुन सकते हैं, उनतक आसानी से
पहुँच बना सकते हैं।

यदि अमेरिका हमारी निगरानी कर सकता है तो हम भी
अपने मनःशक्ति के प्रभाव से यह जान सकते हैं कि
अमेरिका का राष्ट्रपति भारत के बारे में क्या फैसला लेने के बारे में सोच रहा है, विचार-विमर्श कर रहा है। गुप्त सूचना, गोपनियता और वर्चस्वपूर्ण जासूसी का एकाधिकार
जिस संयुक्त राज्य अमेरिका के पास आज है उस प्रभाव-घेरे को तोड़ने के लिए
मनःजीवन की ऊर्जस्वी-तेजस्वी ताकत ही मुख्य रूप से काम आ सकती है।

आइए, इस बाह्मण्ड में अपनी लौकिक उपस्थिति को मजबूती से दर्ज करें। संकल्प-शक्ति के बूते अपने मनःजीवन को और पारदर्शी, क्रियाशील और विश्व-हृदय के सापेक्ष संवेदनशील और विवेकी बनाए। आमीन!!!

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हँसों, हँसो, जल्दी हँसो!

--- (मैं एक लिक्खाड़ आदमी हूँ, मेरी बात में आने से पहले अपनी विवेक-बुद्धि का प्रयोग अवश्य कर लें!-राजीव) एक अध्यापक हूँ। श्रम शब्द पर वि...