Wednesday, July 17, 2013

O! Bastard, I'm Dancing Again


............

उसके अधरों से फूटे बोल
और वह.....,
चुप आत्मा, मनहूस
आत्महीन, कलपजीवी
गाने लगी अचानक

जैसे बाँस में खिले फूल
और वह....,
बहिष्कृत, शोषित
दुखिहारी, रुदाली
बजाने लगी पैजनियाँ

उसका आज न बर्थ डे है
न फ्रेण्डशिप डे
न वुमेन्स डे
न ह््युमन राइट्स डे
वह गा रही है गीत
नृन्य कर रही है पैजनियाँ
नहला रही है अपने भीतर की पार्वती को
गूँथ रही है गजरा बालों में
लगा रही है मेंहदी हाथों में
बना रही है रंगोली दरवाजे पर

टेलीविजन, अख़बार....जनमाध्यम
जो कभी नहीं रहे शुभचिन्तक
आज ढार रहे हैं उनके लिए ख़बर
उलीच रहे हैं तर्क
परोस रहे हैं भाषा
चमका रहे हैं चेहरा(खाया, पिया, अघाया)

कुल जमा निष्कर्ष
‘महाराष्ट्र में फिर खुलेंगे डांस बार’।

No comments:

हँसों, हँसो, जल्दी हँसो!

--- (मैं एक लिक्खाड़ आदमी हूँ, मेरी बात में आने से पहले अपनी विवेक-बुद्धि का प्रयोग अवश्य कर लें!-राजीव) एक अध्यापक हूँ। श्रम शब्द पर वि...