Monday, March 23, 2015

हिमालिया

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कल 24 मार्च, 2015 है। हिमालिया पूरे 14 वर्ष की हो जाएगी। उसकी शादी पिता ने ठीक कर दी है। उसकी मां बताती है कि वह तो अपनी बेटी की शादी खुद से दुगने उम्र में कर रही है। हिमालिया अबूझ-निरक्षर नहीं है।वह सोचती है, पहले शादी-विवाह समझ में नहीं आता है, कैसे इतने छुटपन में हो जाता था।

हिमालिया जिस मिस से पढ़ती है। वह उससे भी दुगनी उम्र की होगी। फोन में गाना बजते ही उस पर हाथ रख देती है और अंग्रेजी पिटपिटाने लगती है। वह शादी की बात नहीं करतेी; लेकिन बात करते हुए खूब खुश दिखती है। वह एक दिन पूछ ली थी-‘मिस आप अपने मेहर से बात करती हो?; हिमालिया को उसकी मिस डपट दी।
‘अरे! यह भी कोई शादी रचाने की उम्र है। इट्स टाइम टू फुल इंज्वायमेंट!’

हिमालिया आज खूब चहकते हुए घर लौटी थी। मां को कहा था-‘‘मां यह भी कोई शादी करने की उम्र है...’’

मां ने हिमालिया को एक तमाचा खींच दिया था। वह मुंह फुलाए दिन भर बैठी रही। सोचा, शाम को पिता से शिकायत करेगी। उसे बहुत बुरा लग रहा था। सब लड़की एक जैसा कपड़ा-लता क्यों नहीं पहनती है? सब लोगन को एक जैसा शिक्षा क्यों नहीं दी जाती? हम शादी कर लें और हमारी मिस हमसे दुगनी उमर में भी पढ़ती रहे कहां कैसे जायज है...?

यह सब सोचते-सोचते वह सो गई। उसकी मां ने उसका सुबकना देखा भी था। लेकिन वह निर्मोही जैसा पास न आई। बस दूर से टुकुर-टुकुर देखती रही।

हिमालिया जगी, तो पैर अकड़ा हुआ था। लगा जैसे दोनों पैर एक-दूसरे से उलझ गए हों; लेकिन यह क्या उसके पांव में, तो जंजीर बांध दी गई थी।

तारीख कैलेण्डर में आज ही का था। यानी 23 मार्च, 2015। इक्कीसवीं सदी। वह सदी जिसमें देश की सरकार अच्छे दिन आने का वादा करती है। वही सरकार जो अपनी जनता से इतनी जुड़ी हुई है कि सीधे प्रधानमंत्री देशवासियों से मन की बात कहते हैं।

लेकिन उसके पांव बंधे है, वह यह बात किससे कहे...?


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हँसों, हँसो, जल्दी हँसो!

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