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भारतीय जनता निगोड़ी/मुर्ख/बेवकुफ/अपढ़ नहीं है, उसे अपनी भाषा से बेइंतहा लगाव है!
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स्वदेशी ‘शाखा’ वाली भारतीय जनता पार्टी ने अब अपने कार्यकर्ताओं को कहना शुरू किया है: ‘Dear Member,’। यह क्या बात हुई? क्या भाषा के मामले में भारतीय जनता पार्टी की अपनी मौलिक सोच, भाषा और दृष्टि फिसड्डी है? यदि हां, तो ‘घर-घर मोदी’ का क्या होगा?
क्या यह आपके सोच और चिंता का विषय नहीं है? जनता-जनार्दन की भाषा में बोल-बतिया कर जनादेश हासिल करने वाली सरकार इतनी जल्दी अपनी वैचारिक सूरत से पलटी मार ली है। क्या इससे कोई फर्क नहीं पड़ता? अरे महराज! आपका बिटिया-बिटवा इंटरनेट पर चैटिंग-सैटिंग करता है, तो आपको फर्क नहीं पड़ता; नंगी तस्वीरों का दिग्दर्शन करता है, तो फर्क नहीं पड़ता; सिगरेट और व्हीस्की पीता है, तो फर्क नहीं पड़ता; आये दिन सड़कों पर गाली-गलौच करता है, तो फर्क नहीं पड़ता; आपको झांसा देता हुए लड़के या लड़कियों के संग-साथ ‘टूर’ मचाता है, तो फर्क नहीं पड़ता; वह अपनी बेरोजगारी में रात-दिन घुलता है, तो आपको फर्क नहीं पड़ता? आपका पसंदीदा चैनल टेलीविजन कार्टून के हवाले होता है, तो फर्क नहीं पड़ता....यदि सचमुच ऐसा है; तो अमेरिकी अर्थव्यवस्था और यूरोपीय ज़मात की चांदी ही चांदी है; क्योंकि जिन चीजों से आपको फर्क नहीं पड़ता इन अमीर और नवसाम्राज्यवादी देशों की अर्थव्यवस्था उसी से अनाज-ईंधन और अपना जरूराी खर्चा पाती है।
फिर आप नरेन्द्र मोदी और उनके सब्जबागी कुनबे को टेलीविज़न पर देखिए और प्रणाम कीजिए; क्योंकि जब देश में अपनी सभ्यता, संस्कृति, परम्परा, तहज़ीब, रवायत आदि को लेकर संवेदनशीलता नहीं बचती है; अपनी भाषा को लेकर अपना स्वाभिमान चूक जाता है; तो आतातायी के लिए अपना करारा और घातक प्रहार-आक्रमण करने के लिए इससे बेहतर और दूसरा मौका कोई नहीं होता।
खैर, किसी को फर्क न पड़े; कोई बात नहीं; लेकिन प्रधानमंत्री जी और स्वदेशी राग अलापने वाली भारतीय जनता पार्टी से देश निराश है और शर्मसार भी। जरा सोचिए कि आप बनारस में हों और यह सरकार आपको अंग्रेजी में होली की शुभकामनाएं बांटें; प्रधानमंत्री जी इतनी दरिद्री भाषा और संदेश के स्तर पर देश की सेहत के लिए सही नहीं है। कृपया अपने आकर्षक चाल-ढाल, बोल-बर्ताव और शाब्दिक-अशाब्दिक भाषा-व्यवहार की तरह अपने लिखंत-पढ़त में अपनापन और आत्मीयता का पुट लाइए, तो देश का भला होगा और आपका भी। अन्यथा देश तो अंग्रेजीदां सौदेबाजी की शिकार है ही। यदि आप ही अपना सर अमेरिकी ओखल में डाल देंगे, तो शेष देशवासियों का क्या होगा?
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