Sunday, November 21, 2010

इक सपने में देशकाल



सपना हर कोई देखता है। आज मैंने भी देखा। बस देखने में अंतर था। वह यह कि एक मोटा-मलंद आदमी बार-बार सपने देखने को कह रहा था। मानो सपना न हुआ मिस्र का पिरामिड या फिर फ्रांस का एफिल टॉवर या अमेरिका का स्टेच्यू ऑफ लिबर्टी। खैर, अभी मैं आपका सामान्य ज्ञान बढ़ोतरी का जिम्मा नहीं ले सकता। सो सीधे सपने वाली बात पर आता हँू। जी हाँ, तो मैं कह रहा था यह कि सपना मुझे ऐसे दिखा रहा था वह मोटा-मलंद जैसे मदारी वाले दिखाते हैं बंदर-नाच के साथ। सपेरे दिखाते हैं जिंदा साँप का जादू-खेल। लो आपका मन है तो उस्ताद और जमूरे को भी उदाहरण में शामिल कर लो। अपन के देशी-जेबी में उदाहरणों की कमी थोड़े है। एक घोटाले का नाम लिया नहीं कि दूसरा नाम जबरिया जबान पर चढ़ बैठता है। मधु कोड़ा का घोटाला वाला कागजी घोड़ा अभी रेस में आगे चल ही रहा था कि स्पेक्ट्रम घोटाले ने उसे धर दबोचा। रेस का दस्तूर ही ऐसा है कि आगे निकलने वाला विजेता ही होता है। अभी ए. राजा विजयी मुसकान के मालिक हैं। देश के लिए उन्होंने काफी कुछ किया-धरा है। जनता उन्हें निष्पाप और निष्कलंक अवश्य साबित करेगी।
दरअसल, हर विजेता को कुछ अलग हटकर पाने के लिए बहुत कुछ गवांना पड़ता है। ए. राजा के सिराहने से संचार-मंत्री पद गया तो क्या गया भला। बस पैरों तले दबी हैसियत बरकरार रहे। फिर तो वह न्याय के लिए हर किस्म का वार-बौछार सह लेंगे। वैसे भी घोटाला की परंपरा कागज में जीती है, उसी की खाती है। और उसी की नमक भी अदा करती है। फिलहाल देश की जनता को ताज्जुब है कि सरकार क्यों इस तरह आंय-बांय बतिया रही है। मनमोहन सिंह तो ऐसे बयानबाजी कर रहे हैं जैसे कि उनकी पगड़ी उछाल दी गई हो। वे कहते फिर रहे हैं-‘किसी भी भ्रष्टाचारी को नहीं बख्शा जाएगा।’ सपने में भी मुझे हँसी आती है कि देखो, ये ऐसे कह रहे हैं जैसे देश का प्रधानमंत्री नहीं जैसे कोई मुषक-छाप ब्लॉगबाज बोल रहा हो।
देश में समस्या कम है, शोर अधिक। मुद्दे कम है किंतु राजनीतिज्ञों में हल्लाबोल मादा ज्यादा। होने को तो चवन्नी से अठन्नी कुछ है नहीं। बस खेल शुरू न हुआ कि गुल्ली-डंडा जैसा पाद पदाने का उपक्रम छेड़ दिया। सब्र करो भाई, इतनी महीनी से मुहिम छेड़ दोगे तो फिर देश में रामराज हो जाएगा। स्वराज गया तेल लेने। लेकिन अब कहने वाले को तो रोका नहीं जा सकता न! और नींद में, वो भी सपने में हों तो और भी कुछ नहीं कहा जा सकता। कौन खलल डालने जाए अपनी नींद में। नेकबंदगी का फ्लैगमार्च कर ओलम्पिक पदक थोड़े मिल जाएगा। सूचना का अधिकार तो मिल ही नहीं रहा, हाँ, बदले में मौत अवश्य मिल जा रही है। सोचजनक है न मेरी बात। आप सोचते हुए सो जाइए। विश्वास है कि आपको भी कोई मोटा-मलंद सपना जरूर दिखाएगा। हो सकता है आपको कोई परी-काया सपने दिखाए। मेरी सीमाएँ हैं कि मैं जैसा हँू वैसा ही शख्स मुझे सपना दिखाने को तैयार होता है। आप सबकी हैसियत तो माशाअल्लाह बेहद अच्छी है। सो आप स्वपनसुंदरी के साथ सपने में रमण करें। विश्वास है आप जो देखेंगे उससे देश का भला ही होगा। जैसे देश का भला हो रहा है आजकल धड़ल्ले से।

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हँसों, हँसो, जल्दी हँसो!

--- (मैं एक लिक्खाड़ आदमी हूँ, मेरी बात में आने से पहले अपनी विवेक-बुद्धि का प्रयोग अवश्य कर लें!-राजीव) एक अध्यापक हूँ। श्रम शब्द पर वि...